“अब मोहब्बत से रिहाई का मन है”
(Now the Heart Longs for Freedom from Love)
कभी चाहतों की बारिश में भीग जाने का मन था,
अब सूखे लम्हों में उसे भूल जाने का मन है।
जिसकी हँसी में बसी थी मेरी दुनिया सारी,
अब उसकी यादों से दूर जाने का मन है।
रातों की तन्हाई में गूंजती हैं उसकी बातें,
अब दिल से उन आवाज़ों को मिटाने का मन है।
वो जो आँखों की चमक था, ख्वाबों का सवेरा,
अब उसी उजाले से मुँह छुपाने का मन है।
मोहब्बत की गलियों में भटकते रहे उम्रभर,
अब उस सफर से लौट आने का मन है।
दिल ने तो चाहा था उसे उम्रभर के लिए,
अब मोहब्बत को मुक़द्दर के हवाले छोड़ जाने का मन है।
कोई तरीका नहीं मिलता उसे भुला देने का,
अब तो बस यूँ ही जीते जी मर जाने का मन है।
~सुमित जोशी