“फ़ितरत का फ़साना”
कुदरत का हर मौसम गवाही दे रहा है,
इंसान की फ़ितरत अब खुद से रूबरू हो रहा है।
मौसम तो पैग़ाम देकर बदल जाता है,
पर इंसान... गिरगिट से भी तेज़ रंग बदल जाता है।
कभी हवा बनकर दिशा बदल लेता है,
कभी मुस्कुराहटों के पीछे दर्द छुपा लेता है।
वक्त की चाल को तो सब समझ लेते हैं,
पर इंसान की चाल... आज भी रहस्य बन जाती है।
पहले दिल आईना था — अब मुखौटों का बाज़ार है,
सच को ढकने का नया हुनर हर बार है।
जो भरोसा कभी रूह को सुकून देता था,
अब वही ज़हर बनकर रिश्तों में उतरता है।
इशारा समझो मालिक का —
जब सच्चाई कम और दिखावा ज़्यादा हो जाए,
तो समझ लेना…
मौसम नहीं, इंसान ही अब बदलने लगा है।
- Nensi Vithalani