💰 कविता : पैसा
पैसा है तो दुनिया झुके,
पैसा नहीं तो रिश्ते रूठे।
यह चुपचाप दिलों को तोड़े,
यह हँसते चेहरों को चुपके से मोड़े।
कभी ये सुख देता झोंके-सा,
कभी दुख देता तूफ़ान-सा।
कभी ये मंदिर में दीप बने,
कभी बाजार में शोर बने।
पैसा खुद साधन है जीवन का,
ना की अंतिम लक्ष्य हो मन का।
जिसने इसे मालिक माना,
उसने अपनों का साथ गंवाना।
सच्चा धन है सादगी में,
खुशियों की उस बगिया में।
जहाँ प्रेम हो, विश्वास हो,
मन में संतोष का वास हो।
पैसा आए तो सेवा में आए,
भलाई की राह दिखाए।
तब ही इसका सही मूल्य है,
वरना ये केवल छल का मूल है।