पता नहीं तुम कभी इसे पढ़ोगी या नहीं।
शायद नहीं।
लेकिन फिर भी लिख रहा हूँ...
क्योंकि कुछ एहसास शब्दों के सहारे ही सांस लेते हैं।
...,
आज भी तुम्हारी चैट विंडो खोलता हूँ ,,
जहाँ आखिरी मैसेज तुम्हारा "ठीक है" पड़ा है।
उसके बाद सिर्फ खामोशी है...
अनंत खामोशी...!
मैं जानता हूँ,
तुम नाराज़ हो।
और शायद सही भी।
कुछ बातें मजाक में कह दी थीं,
बिना सोचे, बिना तुम्हारी चोट समझे।
मैंने सोचा था हम दोस्त हैं ,,
सारे दर्द, सारे गुस्से, हर कुछ बाँट सकते हैं।
पर मैं भूल गया था कि कुछ जख्म इतने गहरे होते हैं,
जिनपर सिर्फ खामोशियाँ ही मरहम बनती हैं।
....,
मैं जानता हूँ तुम्हें कुत्तों, छिपकलियों से डर लगता है,
तुम्हें चुपचाप पुराने गाने सुनना पसंद है, तुम्हें आलू की सूखी सब्जी पसंद है,,, तुम्हें कार्टून देखना पसंद है।
तुम्हें वो पुराने पीले फूल अच्छे लगते हैं जो खुद टूट कर भी मुस्कुराते हैं।
तुम्हारे डर, तुम्हारे सपने, तुम्हारी चुप्पियाँ ...
सब जानता हूँ।
और शायद इसी जानने के बोझ ने हमें अजनबी बना दिया।
कभी-कभी नज़दीकियाँ भी दरारें पैदा कर देती हैं!
आज जब तुम नहीं हो,
तो समझ आता है ...
जानना ही काफी नहीं होता,
समझना भी जरूरी होता है।
मैं नहीं जानता कि तुम मुझसे फिर कभी मिलेगी या नहीं।
पर मैं इंतजार करूँगा...
हर उस अधूरी चैट के लिए,
हर उस अनकहे "राधे राधे" के लिए,
जिसे तुम कभी भेज सको,
शायद!
आखिर में हम दो ऐसे अजनबी रह गए,
जो एक-दूसरे के बारे में सब कुछ जानते हैं....,
लेकिन फिर भी एक-दूसरे तक पहुँचने का रास्ता खो बैठे।
बस अगर कभी कहीं पढ़ो ये शब्द,
तो जान लेना,
यहाँ कोई है, जो अब भी तुम्हें
वैसा ही याद करता है ,, जैसा तुम हो।
हमेशा....!♾️