लोहा जितना तप्त है
उतना ही ताकत भरता है
सोनी को जितनी आग लगे
वह उतना ही पखर निखरता है
हीरे पर जितनी धार लगे
वह उतना ही खूब चमकता है
मिट्टी का बर्तन पकता है
तख्तों पर खूब खनकता है
सूरज जैसा बनना है
तो सूरत जैसा चलना होगा
सूरज जैसा बनना है
तो सूरज जैसा चलना होगा
नदियों सा आदर पनहै
तो पर्वत छोड़ निकलना होगा
और हम उसे मां के बैठे हैं
तो क्यों सोच की राह सरल होगी
कुछ ज्यादा वक्त लगेगा
पर संघर्ष जरुर सफल होगा
हर एक संकट का हाल होगा
आज नहीं तो कल होगा