उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 30 की
कथानक : पाठशाला बंद होने के साथ ही झूठी बदनामी होने से रमन टूट गया था। हालांकि उसके शुभचिंतक उसके साथ खड़े थे। लेकिन बहुत दिनों तक घर में बंद रहने के बाद एक दिन औयखेतों की तरफ क्या गया, वह सब कुछ भूल कर आगे बारिश में भी बढ़ता चला गया और एक पहाड़ी पर बने मंदिर में पहुँच कर वहाँ अर्धचेतन अवस्था में पहुँच गया।
उधर, रमन की माँ बदहवास हालत में माधो के घर पहुँची। बाद में रमन के दो दोस्तों- राकेश और जसवंत ने उसे ढूँढ निकाला व उसे किसी तरह घर लेकर आए।
इधर बहनोई राजू की नियुक्ति शिमला होने से राजू व जयवंती उससे मिलने राधोपुर आए तो उन्हें रमन बुखार से ग्रस्त मिला। रमन को शहर में डाॅक्टर से उपचार लेकर राजू पुन: राधोपुर ले आया और जयवंती को कुछ दिनों के लिए राधोपुर ही छोड़ दिया।
रमन के कहने पर राजू कविता से मिलने गया तो पता चला कि वह अपना कार्यभार छोड़कर नये पदस्थापन के लिए जा चुकी है।
उपन्यासकार ने इस अंक में मुख्यत: रमन की वर्तमान शारीरिक व मानसिक अवस्था से परिचय कराया है। इस बीच एक दिन उसकी माँ ने विवाह करने की जिद की तो उसके सामने मानो कविता उपस्थित हो गई और वह कविता का नाम जैसे निद्रावस्था में बड़बड़ाने लगा।
उसी संदर्भ के माँ-बेटे के बीच संवादों के कुछ अंश प्रस्तुत हैं:
- 'बेटा, तू धीरे से क्या बोल रहा था? मुझे कुछ समझ नहीं आय। क्या कह रहा था तू?'
- 'कुछ नहीं अम्मा जी, आपको भ्रम हुआ है। मैंने तो कुछ भी नहीं कहा।'
- 'न बेटा न, मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ है। तू कुछ कविता-कविता कह कर बोल रहा था...अब बोल, पकड़ा गया न? कौन है यह कविता?"
- 'अम्मा जी, कविता सुरम्य और सरस शब्दों का संगम है, मन की भावनाओं का उद्गम है। एक ऐसा शब्द है, जिसका विच्छेद करो तो गागर में सागर है।'
- 'न...न...न...बेटा, मेरी समझ में कुछ नहीं आया। तू मुझे सीधी सरल भाषा में समझा।'
- 'इसमें मुश्किल क्या है अम्मा जी? सीधी सी बात है, खुशी के मौके पर गाँव की औरतें गीत गाती हैं न, वे कविता ही तो होती हैं, एक प्रकार की। लयात्मक शब्दों के जोड़ को ही कविता कहते हैं।' (पृष्ठ 467)
लेखक शनै:शनै: उपन्यास के कथानक को विस्तार दे रहे हैं जिसमें जीवन को संघर्ष का पर्याय बताने की कवायद इस अंक में अत्यधिक मुखर हो उठी है।
समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमेर
31.12.2024