ऐसे ही जिया तो किसी दिन शहर हो जाऊंगा
किसीकी खुशियों से जलूंगा,
किसी के दुःख पे मुस्कुराउंगा,
मुँह पे तारीफे करूँगा और पीठ पीछे बुराइया
मैं बस भागूंगा चंद सिक्के भरने के लिए जेब में
और फिर खर्च करने से बचूंगा
ऐसे मैं थोड़ा थोड़ा खुद को खर्च करूंगा
थोड़ी सच्चाई, थोड़ा ईमान, थोड़ी मनुष्यता
और भरूंगा अंदर अपने बेईमानी को
शहर होना तय है कब ये पता नही
अपने आसपास कई शहर रहते है
अलग अलग घर मे कई शहर...
- ध्रुविन मावाणी