प्रेम....
प्रेम एकवचन होता है,लेकिन जब उसके साथ
जुड़ते हैं प्रेमी,प्रेमिका,परिवार और समाज
तो वो बहुवचन हो जाता है...
प्रेम एक सुन्दर भाव है,प्रेम एक अभिव्यक्ति है
लेकिन देखने वालों का नजरिया उसकी परिभाषा
ही बदल देता है..
प्रेम की भाषा मौन होती है,जिसमें आँखें बोलती
हैं और जुबाँ चुप रहती है,उसमें सिर्फ़ दिल धड़कता
हैं और मन भटकता है...
प्रेम को ना पढ़ा जा सकता और ना ही लिखा जा सकता है,
उसका कोई स्कूल नहीं होता,उसका कोई काँलेज नहीं होता
और ना उसकी कोई डिग्री होती है....
प्रेम सबसे बड़ी पीड़ा और सबसे बड़ा सुख है,प्रेम मजबूत
बनाता है,तो कभी प्रेम बेबस और लाचार भी बना देता है,
यदि जीवन है तो कभी मृत्यु भी बन जाता है प्रेम...
आँखों से होकर आत्मा में बहता है प्रेम,प्रेम में आँखें सोती हैं,
और हृदय रंगीन सपनों की चौकीदारी करता है और मन
लिखता रहता है सुन्दर सी कविताएँ...
बोलने का हुनर शब्दों के अर्थ बता देता है और मौन की पीड़ा को
स्वतः ही शब्द मिल जाते हैं,आँखों ही आँखों में बातें होतीं हैं,
बस रातें यूँ ही करवट बदलते कट जाती हैं...
फिर आता है वो दौर कि तुम बोलते क्यों नहीं हो?
तुम सुनती क्यों नहीं हो? अब क्या होगा,इसे पता
चल गया और उसे पता चल गया....
फिर प्रेमी उसी तरह मर जाते हैं ,जैसे कई सारे सवाल
जवाब की उम्मीद में मर जाते हैं,सच्चा प्रेम शायद बहुत
कम ही मुकम्मल होता है....
सरोज वर्मा...✍️