कुछ लोग तो मन की बात जुबा तक सहज ही ले आते हैं पर क्यों कुछ लोग मन की बात मन ही में छुपा के रख जाते हैं।
बताने वाले अपना दुःख, किसी से बांट तो पाते हैं। पर न बताने वाले लोग, दुःख का घूंट कैसे पी जाते हैं।
सुना हैं... वैसे तो दुःख बांटने से, दुःख कम हो जाते हैं। पर कलयुग में दुःख बांटने से, क्यों हंसी का पात्र बन जाते हैं
आजकल दुःख बांटने से, हम दुःख को बढ़ा लेते हैं। शायद इसलिए कुछ लोग, मन का दुःख, मन ही में रख जाते हैं।