हां मैं तुम जैसा नहीं पर तुम सा ही हूं
तुम प्रत्यक्ष तो मैं तुम्हारा अक्स
हां मैं तुम जैसा नहीं पर तुम सा ही हूं
कोई बंदीश नहीं खुले आसमान में तुम्हारी उड़ान को,
मैं भी उड़ तो लूं कोई रंजिश तो नहीं!!!!!!
हां मैं तुम जैसा नहीं पर तुम सा ही हूं तुम प्रत्यक्ष तो मैं तुम्हारा अक्स
यूं तो कुदरत का हे करिश्मा दिखता है तुम में और मुझ तू
फिर मेरे जज्बातों की ही नुमाइश हो क्यों?????
हां मैं तुम जैसा नहीं पर तुम सा ही हूं तुम प्रत्यक्ष तो मैं तुम्हारा अक्स हां मैं तुम जैसा नहीं पर तुम सा ही हूं।
सदियों से बहती आ रही वो प्रचंड धारा
मुझ में ही मोहिनी, बृहंल्ला, शिखंडी का ताज।
अग्नि पथ पर चलते मैं ही क्यों नीलकंठ बना!!!!!!
तुम हो प्रत्यक्ष तो मैं तुम्हारा ही अक्षर हूं हां मैं तुम जैसा नहीं पर तुम सा ही हूं
है बस इतनी ही सी ख्वाइश
मेरे विचार, मेरी उड़ान,वह अपनापन ,मेरी पहचान से मैं वंचित क्यों
हां मैं तुम जैसा नहीं पर तुम सा ही हू।
तुम प्रत्यक्ष तो मैं तुम्हारा अक्स
हां हां मैं तुम जैसा नहीं पर तुम सा ही हूं।