एक कुण्डली *अतिशय गर्मी है बढ़ी*
अतिशय गर्मी है बढ़ी,लगती धूप प्रचण्ड।
शायद प्रभुवर दे रहे,वन विनाश का दण्ड।
वन विनाश का दण्ड,बहे गर्मी की धारा।
बिलखें सारे जीव,जगत झुलसा है सारा।
पीता पानी खूब,मनुज में गर्मी का भय।
खाकर के तरबूज,तृप्त होताअतिशय।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
तिलसहरी
कानपुर नगर