माता-पिता,पति,बेटे के आधार पर,
मत करो मेरा भाग्य निर्धारित।
ये लकीरें हैं सिर्फ़ मेरे हाथों की,
इन्हें मुझपर ही रहने दो आधारित।
नहीं माननी हैं मेरी बातें, मत मानो,
नहीं सुनने हैं मेरे विचार, मत सुनो।
पर क्यों थोपते हो मुझपर हर बार,
अपने ही विचार,रिवाज,संस्कार।
ठोकरें खाने दो,गिरने,सम्हलने दो,
मत करो हर कदम पर मेरा संरक्षण।
मुझे अपने कर्म खुद से ही करने दो,
नहीं चाहिए कभी,कोई भी आरक्षण।
मत बनाओ मुझे महानता की देवी,
बस मुझे रहने दो साधारण मानवी।
रमा शर्मा 'मानवी'
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