चला जाता है जब कोई हमें छोड़कर,
नहीं रोक पाते उसे जाने से किसी विधि,
बस रख लेते हैं संभालकर उसकी निशानियां।
उनके पहने हुए कपड़ों में उनकी खुशबू,
उनकी घड़ी,मोबाईल,जूतों,किताबों में,
आलमारी के खानों में,घर के हर कोनों में,
महसूस करते हैं उनके होने का अहसास।
जबतब खोजते हैं उन तमाम यादों को,
मस्तिष्क की भूलभुलैया गलियों में भटकते।
छिपाकर रखते हैं बेशकीमती खजाने सा,
कहीं छीन न ले वक़्त का बेरहम लुटेरा,
उन अपनों की तरह उनकी निशानियां भी,
अक्सर सहलाते हैं जिन्हें उनकी याद में,
औऱ रख लेते हैं संभालकर वे निशानियां।
रमा शर्मा 'मानवी'
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