हंसी खुशी की बातें,मनोरंजन की बातें
हम भूलने लगे है ।
मेल मिलाप के मेले,त्योहारों की बाते
हम भूलने लगे है।
इतवार की हो शाम, घूमने फिरने की बातें
हम भूलने लगे है।
शादी ब्याह मे जाना,सिनेमा की बातें
हम भूलने लगे है।
स्कूल कॉलेज में जाके,पढ़ाई लिखाई की बातें
हम भूलने लगे है।
मुँह को ढ़के रहनेसे,चहेरों की बातें
हम भूलने लगे है।
मौत की व्यथा और दिलासों की बातें
हम भूलने लगे है।
कभी तो हटेंगे बादल महामारी के
वरना इंसानियत की बातें
हम भूलने लगे है।
-Subi Kansara