बचपन से हमारे मन मस्तिक पर कुछ धारणाएं चस्पा हो जाती हैं जो हमेशा ही साथ चलती हैं...
इन्हीं धारणाओं में से एक है कि साल के पहले दिन हम जो भी होगा या करेंगें...वो साल के हर दिन ही होगा...
छोटे थे तो पहले दिन जरूर पढ़ते थे क्योंकि मन में विश्वास था कि अब हर रोज़ पढेंगें!!!
दूसरी बात कि अब जनवरी है तो ठंड तो होगी ही तो कोशिश करते थे कि 1 तारीख को सबसे पहले नहाने की कोशिश करते थे...बेशक उसके अगले कई दिन तक नहीं नहाते थे लेकिन बाल मन में virtually मान चुके थे कि हम साल के हर दिन सबसे पहले नहा चुके हैं!!!
उम्र बढ़ने के साथ-साथ समय और सोच के अनुसार कुछ और बातें साल दर साल...पहले दिन की दिनचर्या में जुड़ती रहीं...
और अब जब उम्र के ना जाने कितने पड़ाव गुजर चुके हैं लेकिन मन में वही बात आज भी सिक्का जमाये हुए है कि पहले दिन जो भी करेंगें...वो साल के हर दिन ही होगा...
आज जबकि जरूरतें बदल चुकी हैं...सोच बदल चुकी है...लेकिन बाल मन से बनी धारणा... आज भी साथ चल रही है और पूरे विश्वास के साथ कि साल के पहले दिन जो भी करेंगें वो साल के हर दिन ही होगा...
और यकीन मानिये...
ये विश्वास ही है जो ज़िन्दगी को हर साल...
नए तरीके से जीने की सोच मन मे जगाता है...
कुछ नया करने का जोश दिल में पैदा करता है...
अपने सपनों को साकार करने का जज़्बा ले कर आता है...
मंज़िलों को पाने की पुनः कोशिशें करता है...
वरना तो साल दर दाल कैलेंडर ही बदलता है
वक़्त और ज़िंदगी तो यूँ ही चलती रहती है...
© रविश 'रवि'