उसके दर्द मुझे हरदम नाजुक दिल सा बना देता है,
मरहम लगा दिया तो एक और फैसला नामंजूर करता है।
साया कितना भी पास हो उसे छाव की करवटें बेजुदा करता है,
वो नहीं मानेगी मेरी किस्मत में बने हर किताबी नकाब के चहेरे में चुभता है।
इश्क़ से इश्क़ करके बगावत का मशवरा बटोर लिया,
इस दिल के अब नई एक दुनिया मेरी भी लिखता हूँ।
नियति को दोष क्या दू उसके सामने जरिया मेरे जहा का,
हर हिस्से में, कहानी के हर किस्से में दर्द पाकर जिंदा रहता हूँ।
वो जब तक पास ठहरेगी इलाज मेरे दिल का होता रहेगा,
उसकी मौजूदगी में मेरी आँखों मे ख्वाब चलाता रहता हूँ।
उसको कैसे समझाऊं मैं दर्द के ये इम्तिहान,
मेरे जहन से हर बार बहोत कुछ चुपके से कानो में कहता हूँ।
बस कर ए खुदा मेरी तड़प को देख उसको मेरा बना दे,
ना हो सके तो उसके साथ जिंदगी के लम्हों को जिंदा बनादे।
~Déâ® Zîñdãgí