😢 न जाने हम कैसे जीते है!....😢
अपमान का कडवा घुंट हर रोज हम पिते है,
फिर भी नई सुबह की इंतजार में हर रोज जीते है,
घने अंधकार में सूरज की किरन ढूढते हैं,
आंसू को आखों में छिपाकर, मुसकुराहट ओठो पर लाते है,
अपनो के बीच,अजनबी बने घुमते है,
फिर भी सब पे, प्यार बरसाते फिरते है,
सोचते है,दर्द भरा लिखनेवाला गालिब कहलता हैं,
उसी के लब्जो में, न जाने कितना दर्द छिपता है,
भाग्य का मजाक हम हर रोज सहते है,
भाग्योदय होगा कभी यही सोच के जीते है!....
न जाने हम कैसे जीते है!....
न जाने हम कैसे जीते है!....