गली के नुक्क्ड़ से एक बात चली;
ना जाने कहाँ से पली-बढ़ी;
थी छोटी-सी बात;
पर मिर्च-मसाला लगाकर;
बन गई कुछ ख़ास...
फुसफुसाहट और खुसपुस का पहने लिबास;
ना जाने कैसा, ओढ़े नकाब;
पेट में पची नहीं, बातोंबातों में फंसी रही;
इधर से उधर, करती रही मुलाक़ात;
एक छोटी सी बात का; बतंगड़ बना दिया गया जनाब...
-मंजरी शर्मा