कैंसर-से पीड़ित,रमाकांत,ज़िंदगी से हताश नहीं है.जबकि उनका डॉक्टर,रमाकांत की हालत देखकर रो पड़ता है. रमाकांत:"डॉक्टर आई हैट टीयर्स"
वह हँसते हुए कहते हैं;"जीने की आरज़ू में मरे जा रहे हैं लोग,मरने की आरज़ू में जिए जा रहा हूँ मैं"..."डॉक्टर; ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए,लम्बी नहीं...और वैसे भी बाबूमोशाय; ज़िंदगी और मौत तो ऊपरवाले के हाथ में है,उसे न आप बदल सकते हैं और न मैं,मेरे दोस्त ना इंजेक्शन की सुई से,ना तुम्हारी कड़वी गोलियों की डर से,बंदा डरता है तो सिर्फ परवर-दिगार से.
डॉक्टर भी अपने दोस्त,रमाकांत की बातों-से,मुस्कुराये-बिना नहीं रह पाते और कहते हैं:"जहांपना;तुसी ग्रेट हो,तोहफा(दवाई);कुबूल करो..."दोनों हंसने लगते हैं.
-मंजरी शर्मा