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तुम रूठो मैं मनाऊँ
यह मुझे आता नही ,
क्या कभी कह दूँ तुमसे
कि तुम याद आते ही नही,
एहसास तुम समझते ही नही
और अदाएँ हमे आती नही
साथ साथ चलते रहे
लेकिन कभी मिले ही नही।
मुस्कुराते तुम रहे और
खिलखिलाते हम भी रहे
दर्द तो दोनो ने ही सहे
बयां कभी किये ही नही
समझते तुम भी रहे
नादां हम भी बने रहे
आँखों से बातें की मगर
लबों ने कभी कुछ कहा हीनही
खामोशी के दरिया की
तलहटी में जा बैठे
ज्वार भावनाओं का
देखो,कभी उमड़ा ही नही
क्यों कहे औ शब्दों को गवाएं
समझकर भी रहना चुप ही है
यूँ ही साथ रहेंगें सदा
कुछ कहकर दूर तो जाना ही नही
मेरे इश्क में नादानी भी देखो
बहुत ही अजीब सी है
उसको खोने का डर है
जिसे मैंने कभी पाया ही नही।******************डॉ0 वंदना पांडेय राजनीति विभाग