खुदसे ही दोस्ती कर ली है मैने,
अब उसकी बातों की जिक्र मे खूदसे ही बाते बतियाता हुँ,
खुदको को ही गुनेगार और दोषी ठहराता हुँ, अब उसके साथ कदम चलने के जिक्र मे खुद अकेले राहों पे चला जाता हुँ,
उसको देखने के जिक्र मे अब खुदको ही आइने मे देख लेता हुँ ,
मानो या न मानो खूदसे दोस्ती मे सुकून मिलता है।
-vasu