भीगते हुए रुखसार
सुर्ख आँखे
वो मीठा सा दर्द
अजीब सी कशिश है...
यूँ ही फना होना
कहाँ किसी के बस में है?
वो खालिश, वो चुभन
वो तड़प.. हाय..!!
कौन देता है? इतना सब
तुम मुझे दे गए
हँसते हँसते...
साथ
विश्वास की डोर बांधे
उम्मीद का दिया जगाए..!!
टक - टकी लागए
है इंतज़ार अब भी
बरसेगा सावन
भीगेंगे हम
खिलेगा मन
मिलेगा तन
भीगेंगे रुखसार तब भी
सुर्ख होंगे नयन
दर्द होगा मीठा सा..
पर
मुस्कान होंगी संग..
© Vaisshali