पिंजरे के पंछी का दर्द अब मैं जी रहा हूं
जब से घर चलाने को नयी नौकरी कर रहा हूं,
खुद के लिए जीना कब का मैं भूल गया हूं
दफ्तर की दीवारों में फंसकर झूल गया हूं
जिंदगी तो अब बस लगती है शूल
ना जाने ये ऊंट बैठेगा किस कूल
यही सोच सोच कर मैं बस डरा जा रहा हूं,
फिर से दफ्तर की सीढ़ी चढ़ा जा रहा हूं।