~ हम इंसान क्या इंसान रह गए ~
रंग बदलना गिरगिट का काम
हमलोगो ने ठाना है
चोरी बेईमानी भ्रष्टाचारी
के रास्तो पर जाना है
छोटी-छोटी बातो पर हम
भला-बुरा सब कह गए
हम इंसान क्या इंसान रह गए !!
रीति-रिवाज ना पुर्खो की
ना रही कोई निशानी
आगे-आगे चलने मे हम
भुल गए उनकी कहनी
संस्कार तो मानो जैसे
दिवारो सी ढह गए
हम इंसान क्या इंसान रह गए !!