Hindi Quote in Poem by Anjali Dharam Dutt Vyas

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#काव्योत्सव

" याद आता है ,गुजरा बचपन हमारा।"

प्यारा और सुहाना वो बचपन था ,हरदम बस ख्वाबों का ही एक मेला था ,

बचपन था ऐसा जिसमे मानो सबकुछ मेरा था।
माँ-पापा का दुलार,दादी - नानी का प्यार ,

रोनी सी सूरत बनाकर बचकर निकल जाते थें करके गलतियाँ हज़ार।
मासूम़ सी सूरत बन जाती थी विश्वास की मूरत ,

जुबां से निकले हर शब्द पर कहतें 

बच्चें मन के कितने सच्चे ।
पल में कट्टी,पल में दोस्ती,

लंबी दुश्मनी किसी से न होती।

करते स्कूल में स्कूल-बैग्स की अदला बदली ,

जिसका टिफिन चट कर जाते सारा 

फिर वो पीछे शोर मचाता 

धमा-चौकड़ी ऐसी की टीचर्स का भी सर दर्द कर जाये 

जिस दिन स्कूल की छुट्टी ,सब शिक्षक शांति मनाये 

याद आता है गुजरा बचपन हमारा ।

ज़रा-ज़रा सी बात पे रोना,फिर बात मनवाकर मुस्कुरा देना ,

और नानी से रात में घंटों परियों की कहानी सुनना 

और चुपके से निंदिया रानी का आ जाना ।
खेल में मस्ती,पढ़ाई में झपकी,

स्कूल न जाने के बहाने सारे , याद आते हैं अब वो गुजरे ज़माने 

पापा से पॉकेट मनी माँगना , 

पसंद आई कोई चीज और न मिले 

तो बीच सड़क ही पैर पसार लेना ,

याद आता है गुजरा बचपन हमारा ।
वो इतवार का बेसब्री से इंतजार करना और देर तक सोना,

लाख़ उठाने पर भी फिर से सोना

गुड्डे -गुड्डी का वो ब्याह रचाना

रसोई के छोटे -छोटे खिलौनों से खेलना 

झूठ -मुठ की चाय और खाना बनाना 

टीचर -टीचर खेलकर बाकी दोस्तों पर झूठी धौंस जमाना 

घर-घर , लंगड़ी न जाने कितने ही खेलों का पुलिंदा 

आज याद आता है गुजरा बचपन हमारा 
छुट्टियों में नानी के घर जाने का शोर,

दिवाली में मामा से मिले पटाखों का शोर 

और एक दिन भी न पढ़ने का होश,

याद आता है ,गुजरा बचपन हमारा ।
चाचा चौधरी की काॅमिक्स , और दिवाली की छुट्टी 



इन सबके आगे भूख़ प्यास भी न लगती,

एक दिन में ही होमवर्क हो जाता सारा 

और झूमते रहते दिन सारा 

आसमान में हवाई जहाज जाता देख खुशी में खूब ताली बजाना,

एक अलग ही मज़ा था दूसरों के बगीचे से अमरूद चुराकर खाना।

मंदिर के पीछे छुपकर गुंदे खाना 

त्योहारों के दिन आईस्क्रीम खाया करते थें,

,सब पॉकेटमनी खर्च कर दिया करते थें।

पैर छूने के बहाने सबसे पैसे माँगा करते थे और 

दिवाली पर मिले सारे पैसे गिना करते थे,

किसी को हाथ तक लगाने नहीं देते थे

सर्दी-खाँसी,बुखार से ज्यादा कुछ होता नहीं था,

खेलते ,गिरते और फिर उठते थें पर कुछ टूटता नहीं था।

किसी के भी घर चले जाया करते थे,

खा-पीकर मजे करते थें,

और आज का वक्त है जो फिक्र से है भरा है,

इतनी व्यस्तता हो गई है कि अपनों से मिलने का वक्त नही है।

बचपन का दौर हमारे आज से बिल्कुल न मेल खाता 

बस में नहीं फिर से बचपन में लौट जाता,

और बेफिक्र होकर फिर से कागज की कश्ती बनाकर ,

नदियाँ से पार लगाना

इसीलिए शायद याद आता है ,गुजरा बचपन हमारा।

अंजलि व्यास

Hindi Poem by Anjali Dharam Dutt Vyas : 111171433
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