# काव्योत्सव 2
??? गीत ???
रोग कैसा लग गया है बाग को अब क्या बताऊँ |
फूल सब मुरझा गये हैं और खुशबू गुम हुई है,
तितलियाँ भी नाच अपना आजकल भूली हुई हैं |
बीज पृथ्वी फोड़ कर देखो की बाहर आ गया है,
नीर उसके ही लिए आँखों से अपने मैं बहाऊँ ||
क्यारियों में इस सिरे से उस सिरे तक लाल पानी,
है यही कारण की हर इक शाख ने तलवार तानी |
बो रहे काँटे तो फिर क्यों आप उनसे फूल चाहें,
ढेर है दुर्गन्ध का जो किस तरह उसको हटाऊँ ||
फूल चम्पा का हुआ है लाल जाने किस तरह से,
और भी बदलाव हैं आमूल जाने किस तरह से |
कर दिया किसने इसे बेहाल हैं वो कौन भक्षक,
नाम किन-किन रक्षकों के आज मैं तुमको सुनाऊँ ||
ज्वर बढा है धर्म का औ' बीज विष के बो गया है ,
घाव बढकर कौम का नासूर अब तो हो गया है |
एड्स भ्रष्टाचार, रिश्वत का बढा ही जा रहा है,
विश्व में तो है नहीं अब स्वर्ग से ही बैद्य लाऊँ ||
रोग कैसा लग गया है बाग को अब क्या बताऊँ |
विजय तिवारी, अहमदाबाद
मोबाइल - 9427622862