तेरे ख्याल में
#काव्योत्सव_प्रेमविषयक_कविता
चलते चलते मंजिलों से पहले
किसी अजनबी का यूं हाथ थाम लेना
और फिर मुस्कुरा कर कहना
"चलो दो कदम यूं ही साथ चलते हैं
बनकर हमसफ़र न सही, पर हमख्याल ही सही"...
छोड़ जाता है मन को दुविधा की एक खोह में
जिसके उलझते पुलझते धागे होते रहते हैं
अक्सर गुत्थमगुत्था आपस में ही बेसबब से..
फिर सोच में डूबा हुआ बेबस, बेकल मन
चांदनी रात में उस अधूरे चांद के साथ
निकल पड़ता है ख्वाहिशों का बवंडर लिए हुए मन में।
अवबोधन की तलाश ले गई इक डगर पे,
एक अंजान सफर पर मिटाने की खातिर
उस अमावस्या की काली छाया को
जिसके वजूद ने डंसा मन को हजारों बार..
इक नई नवेली दुल्हन की तरह सजकर
ख्वाबों की पालकी पर होकर सवार
मन के हिंडोले में झूला झूलते झूलते
कब पहुंच गई मैं रचने इक नया संसार
इक ऐसे जहां में, जहां न हों नफरतें, बस
बरसाते हों नेह के बादल, वर्षा एहसासों की
और खिल उठे हजारों फूल ब्रह्मकमल के
बिन छुए ही भीग जाए तन मन संग साजन के
और तृप्त हुए नैनों से छलके चक्षुजल बन के खुशी बारम्बार।.. सीमा भाटिया