ना ज़रूरत उसे पूजा
और पाठ की,
जिसने सेवा करी
अपनी माँ-बाप की
दोनों समय का भोजन माँ बनाती है,
जीवन भर भोजन का प्रबंध करने वाले,
पापा को हम सहज ही भूल जाते हैं,
कभी चोट या ठोकर लगे तो ओह माँ
मुह से निकल जाता हैं.
लेकिन रास्ता पार करते कोई ट्रक पास
आकर ब्रेक लगाए तो बाप रे मुह से निकलता हैं
क्युकि छोटे छोटे संकट माँ के लिए हैं
पड़े संकट आने पर पापा ही याद आते हैं.
पिता वह वटवृक्ष हैं जिसकी शीतल छाँव में
पूरा परिवार चैन से जीता हैं.
हर दुःख हर दर्द को वो
हंस कर झेल जाता है,
बच्चों पर मुसीबत आती है
तो पिता मौत से भी खेल जाता है।
माँ बाप का दिल जीत लो
कामयाब हो जाओगे
वर्ना सारी दुनिया जीत
लो हार जाओगे.