वो सीख कहीं से आई थी
और दिलको बोहोत ही भाई थी
कुछ दोस्तों ने सिखलाया था
कुछ घर वालों से आई थी
यू तो थी वो खुले आम, पर
उस सीख को चाहिए आजादी थी
आज़ादी पर लगी बंदिशें तो
बंदिशों पर हुई बगावत थी
बगावत ने फिर लड़ना सिखाया
सरे आम हुई आजमाइश थी
बेफीकर अंजाम से हुई दोस्ती
और जाने कब बन गयी आदत थी
उस आदत ने ऐसा घेरा था
की जिन्दगी बनी शिकायत थी
ना गैरों की थी ना अपनो की
वो नादान खुद मुकाम से भटकी थी
ना मिली उसे उसकी मंज़िल जो
हमसफर का भी मुकाम मिटाती थी
वो रिश्ता जो बना आदत था
जिन्दगी से रिश्ता छुड़ाती थी
वो सीख जो दिल को भाई थी
उसने दिल की हैसियत दिखाई थी