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Prakash Vir Sharma

Prakash Vir Sharma

@prakash2484gmailcom
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मैं कौन हूँ?
सृष्टि की उत्पत्ति से आज तक,
बहुतों ने ढूंढा इस प्रश्न का उत्तर,
कुछ पा गए,
और कुछ स्वयं को ही खो दिए पाने की चाह में।

मैं कौन हूँ?
हर जाग्रत मानव के मस्तिष्क का कौतूहल,
धर्म, अध्यात्म, दर्शन और मनोविज्ञान का,
मन और मस्तिष्क का,
चेतन, अचेतन का अघुलनशील मिश्रण।

मैं कौन हूँ?
"अहं ब्रह्मास्मि",
मैं कौन हूँ?
संसार का सबसे सफल प्राणी,
मैं कौन हूँ?
संसार का सबसे सफल व्यक्ति।

मैं कौन हूँ?
अपरिभाषित, अद्वितीय, अनुपम,
क्योंकि ब्रह्म, सफलता, सुख के अर्थ,
बदलते रहे हैं समय के साथ,
हर किसी का अपना मापदंड।

मैं कौन हूँ?
वास्तव में कोई न जान पाया,
क्योंकि आप वो हैं जो जैसे आये थे,
वैसे निर्मल न बन पाए अंतिम सांस तक।

ज्ञान, वैराग्य, कर्म,
युगों की तपस्या,
सब व्यर्थ गयी,
प्रश्न आज भी अनुत्तरित है,
"मैं कौन हूँ?

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रफ्ता रफ्ता यूं गुजरती है जिन्दगी
ज्यों किश्तों किश्तों में क़त्ल हो रहे हैं हम।
पेश ए खिदमत है इक नई नज्म आपकों
कब बात बात में बन गई बस ये न पूछिये।

आगाज ए आशिकी तो कभी जान न पाए
अंजाम ए आशिकी देखे बहुत से हैं।
जिन्दगी में हलचलें तो होती रहेंगीं
मुश्किल ए हालात से लड़ना भी सीखिए।

जब जब भी उनके चेहरे पे मुस्कान सी दीखी
अश्कों का साथ छोड़कर आँखें चमक उठीं।
वो भूलना ही क्या जो कभी याद ना किया
बेवक्त भूलने का हुनर जरा हमसे सीखिए।

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प्रवृत्तियां दो ही हैं: मानवीय और अमानवीय अर्थात दैवीय और आसुरी (देवों और दानवों द्वारा अधिग्रहीत)

तो?

"धर्म, मजहब, रिलिजन, पंथ आदि किताबों की विषयवस्तु नहीं हैं। ये आपके आचरण से झलकते हैं।"

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मुझे लिखना नहीं आता था,
पहले मैंने पढ़ना सीखा,
फिर समझना सीखा,
समझने की कोशिश में समझ आया कि जो लिखा है उसके कई मतलब बनते हैं,
हमने बाकी के मतलब लिखने शुरू कर दिए,
कभी कभी हमारे पोस्ट किसी दूसरे की पोस्ट पर कमेंट बन जाते थे,
कभी हम दूसरों की पोस्ट्स पर किये गए अपने कमेंट्स को पोस्ट्स बनाने लगते थे,
लोग जुड़ते गए कारवां बनता गया।

लेकिन क्या आप मेरी इस पोस्ट का वही अर्थ समझें जो मैं कहना चाह रहा हूँ?
नहीं। आप नहीं समझे।

यह आपकी क्रिएटिविटी बढाने सबसे आसान तरीका है। आप भी लेखक बन सकते हैं।

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कोई चुरा न ले उनकी यादों की महक
इसलिए वो दिलोदिमाग बंद रखते हैं।।

हर हकीम नहीं पकड़ पाता ये मर्ज-ए-इश्क
इसलिए लोग उन्हें पागल समझते हैं।।

ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजे
इसलिए वो हर रोज आई डी और फोटू बदलते हैं।।

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जीवन मे कभी जिस मानव को 

ना निज गौरव का अभिमान रहा

वह देशभक्त तो क्या बनता

जो आजीवन मुसलमान रहा।।


वो कहते हैं नहीं गए पाक

क्योंकि यह मुल्क हमारा था

लेकिन जो समर्पित हुआ धरा को

वो हमीद और कलाम रहा।।


तकनीकी ज्ञान बढाकर भी 

लहूलुहान मुल्क को करते हैं

अधिवक्ता बनकर भी मुस्लिम

आतंकी और गुलाम रहा।।


सत्ता में भागी बनकर भी

जो गीत पाक के गाते हैं

ओवैसी, अब्दुल्ला, महबूबा के

कारण आवाम बदनाम रहा।।


कम्प्यूटर, कुरान उठाकर तो क्या

वो आईएएस बनकर भी नहीं भूले

तभी तो शांति सम्मेलनों का

कारगिल जैसा अंजाम रहा।।


हो शंखनाद अब घर घर में

दुश्मन नहीं बख्शे जाएंगे

यहां जाति-धर्म, मतभेद भुला

"जनगणमन" राष्ट्रीय गान रहा।।


वन्दे मातरम!!
भारत माता की जय!!

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छठा तत्व
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बाबा उपदेश दे रहे थे
"आत्मा अजर अमर है"
एक वैज्ञानिक बोल रहा था
"एनर्जी काँ'ट बी क्रिएटेड और डेस्ट्रोयड"

बाबा ने कहा
"आत्मा केवल शरीर बदलती है"
वैज्ञानिक बोला
"एनर्जी चेंज्स फॉर्म्स ओनली"

लोग देख रहे थे
वेंटिलेटर पर पड़ा मरीज
लेकिन उन्हें नहीं दीख रहा था
उसके अंदर चलने वाला महाभारत

पांच तत्व अलग अलग हिस्सा मांग रहे थे
जैसे पांच भाई बंटवारा चाहते हों
जैसे घर का मुखिया आगे आता है समझाने
वैसे ही आगे आया एक छठ तत्व

वह तत्व जो शरीर में
वैसे ही अकेला पड़ा रहता है
जैसे आजकल बूढ़े माँ-बाप
सबको समझाया कि मत बांटो ये काया

कौन मानता?
सब अपनी जिद पर अड़े थे
मुखिया घर छोड़ गया
वेंटिलेटर के आसपास
खड़े लोगों में कोहराम मच गया

सुदूर कहीं से धीमी धीमी
आध्यात्मिक उपदेशों की आवाज आ रही थी
उन तत्वों को सब जानते हैं
लेकिन उस मुखिया को कम ही पहचानते हैं

वही आत्मा है
वही ऊर्जा है
वही प्राण है
वही परमात्मा है
उस मुखिया का नाम है "प्रेम"

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