Quotes by Dr Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Dr Darshita Babubhai Shah

Dr Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास

नई कलम नया कलाम पर नया कलाम लिखाना हैं l
कविओ की प्रतिभा ओ रचनात्मकता को
दिखाना हैं ll

नई कलम नया कलाम की महफिल में
प्यार भरे l
नगमों और ग़ज़लों का नशीला जाम
पिलाना हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

नई कलम नया कलाम
नई कलम नया कलाम पटल पर चहक रहा हैं l
हर कोई कविता लिखते लिखते बहक रहा हैं ll

छाँद, प्रास, लय और ताल के साथ मिलकर l
हर शब्द कवि की रचनाओ में महक रहा हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

उदासी भरी शाम के वक्त जी हलका करे ओ l
दिल को बहलाने वाले सभी नग़में याद रहेंगे ll

खूबसूरत वादियों ओ मदमस्त फ़िज़ाओं में l
साथ मिलकर देखे हुए हर सपने याद रहेंगे ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

कवि जो बात किसीसे न कह पाये वो खुले खुला l
काग़ज़ में दर्दों गम को लिख दिल सिल रहा हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
तलाश
रूह को शांति दे सके वो मंज़र तलाश कर l
सिर्फ़ अपना कह सके वो घर तलाश कर ll

लालची और स्व केन्द्रित लोगों की भीड़ में l
इन्सां को तराशे वही पत्थर तलाश कर ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
प्रकृति
धन की लालच में पेड़,पौधे, वन काट कर l
प्रकृति संग इंसा ने अजीबो खेल खेले हैं ll

प्रकृति का दंश भुगतना होगा जिस ने भी l
अपने मतलब के लिए ही पापड बेले हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
शून्य से प्रश्न
शून्य से प्रश्न किया तेरी औक़ात क्या है बता दे जरा l
उसने कह दिया एक बार मुझे हटा के देख ले जरा ll

शून्य के बिना कोई हस्ती नहीं एक दो तीन चार की l
बढ़ती जाएगीं कीमत जितने लगाता जा अंक पे जरा ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
शूल या फूल
शूल या फूल जो भी मिले सर आँखों पर l
बाग में गुल जो भी खिले सर आँखों पर ll

वक़्त जैसा जवाब कोई नहीं दे सकता है तो l
प्यार में गर धूल भी मिले सर आँखों पर ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
क़दमों के निशाँ
दर्द के क़दमों के निशाँ को छुपाना आ गया l
हसके ग़म को छुपा के मुस्कराना आ गया ll

रिश्तों के बाजार के कच्चे खेलाड़ी निकले तो l
अपने बलबूते पे खुशियां कमाना आ गया ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
बादलों के पार
ख़ालिक ने बादलों के पार से संदेशा भेजा हैं l
एक बार फिर से नादां दिल के साथ खेला हैं ll

संदेश में खूबसूरत मिलन का आशीष भेजा है l
साथ में प्यारा सा हसीन नदीम भी भेजा हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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