Quotes by Dr Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Dr Darshita Babubhai Shah

Dr Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास

अगन
दिल से हौसलों की अगन को बुझने ना दिया l
मुश्किलों में भी जिंन्दगी को रुकने ना दिया ll

बड़ी तैयारी कर के आये थे बैचेनी बढ़ाने को l
दुश्मनों को चैन औ सुकून को लुटने ना दिया ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

गगन
हौसला गगन छूने का रखते हैं l
लोग दिवाना पगला कहते हैं ll

जिगर को फौलाद कर दिया कि l
ज्यादातर आसमाँ में रहते हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

चलन
हौसलों के चलन से जिन्दगी का सफ़र काट रहे हैं l
कंधे से कंधा मिलाकर सब दुःख दर्द बांट रहे हैं ll

जीवन में आते हुए सभी उतार चढाव को पार करने l
गिला शिकवा मिटाकर सभी साथ साथ रहे हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

चमन
बागबां के जाने से सारा चमन बिखर गया l
अपनों के बीच का अपनापन किधर गया ll

ममता से भरा दामन ढूँढने निकल पड़ा पर l
क़ायनात में सूना सूना लगा जिधर गया ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

बहुरंगा इन्सान
बहुरंगा इन्सान धड़कनों में रवानी दे गया l
अपनी मस्ती में दिल को जवानी दे गया ll

लम्बी जुदाई के दिनों में जिन्दा रहने को l
वो अकेलेपन का साथी निशानी दे गया ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सत्य का प्रसार
सत्य का प्रसार करने का प्रयास करो l
ओ असत्य के सामने सत्याग्रह भरो ll

देर से ही सही सत्य की जीत होती तो l
सत्य के लिए जियो सत्य के लिए मरो ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मोह की डोर
मोह की डोर छोड़ने से भी नहीं छुटती हैं l
कोशिशों से भी तोड़ने से नहीं टुटती हैं ll

दिल के तयखाने में छुपी बैठी रहती है कि l
चैन औ सुकून को सदा के लिए लुटती हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

खामोशी बोलने लगी l
आज जुबान ने हड़ताल रखी तो l
आँखों से खामोशी बोलने लगी ll

पूरे दिन के बाद सब्र टूट गया कि l
रातों से खामोशी बोलने लगी ll

कई मुलाक़ातों को सेव किया है l
यादों से खामोशी बोलने लगी ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

यादों की गर्मी
यादों की गर्मी से ठंडा कलेजा शेकते रहे l
लम्बी जुदाई में बहुत दर्द ओ ग़म है सहे ll

बहार आने से भी जीवन तो सुना ही रहा l
दर्द-ए -दास्तान किसे जाकर आज कहे ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मन को वृंदावन बना लो l
दिल आनंद से सजा लो ll

कृष्ण के ध्यान में मगन हो l
मन मंदिर में छवि समा लो ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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