Quotes by Dr Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Dr Darshita Babubhai Shah

Dr Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

@dbshah2001yahoo.com
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मैं और मेरे अह्सास

कोहरा
दिल में यादों का कोहरा छाया हैं l
तबसे दिल ने सुकून ना पाया हैं ll

गम के घने बादलों घेर कर वो l
साथ अपने अश्कों को लाया हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सर्दियों में धूप
सर्दियों में धूप के ज़्यादा उजाले न रहेंगे l
गर्दिश में वाईज के हाथ में पियाले न रहेंगे ll

शहर भर चाहे जितनी भी रोशनी कर लो l
देर तलक उजियारे देखने वाले न रहेंगे ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

तन्हाई
तन्हाई से शिकायत है तो मर क्यूँ नहीं जाते l
इतने ही थक गये हों तो गुज़र क्यूँ नहीं जाते ll

किसे घबराते हो और किस बात का है डर l
नजरों से उतरे दिल से उतर क्यूँ नहीं जाते ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

तन्हा
एक उम्र गूजर जाती है घर बनाने में l
जिन्दगी खर्च हो जाती घर सजाने में ll

गुलशन का मौसम अचानक बदला l
दिल खाली हुआ अपनों के जाने में ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सहर
सुहानी सहर जल्द ही होगी मुझको इशारा
मिल गया हैं l
जिंदगी को आसानी से जीने का सहारा
मिल गया हैं ll

ईश का शुक्रिया करते है दिल की तसल्ली
के लिए भी l
उसके इशारे से मुकम्मल आसमान सारा
मिल गया हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

तक़दीर
जिस को भी चाहा हमारा ना हो सका l
उम्र भर के लिए सहारा ना हो सका ll

होंटों पे मोहब्बत के फ़साने आये थे कि l
हँसना किस्मत को गवारा ना हो सका ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
ख्याइशें
ख्याइशें चली गई दिलासा दे कर l
प्यारी उम्मीदों का खिलौना दे कर ll

ताउम्र का साथ रहना था पर वो l
चल दिये दो पल सहारा दे कर ll

वाईज ने खूब इंसानियत निभाई कि l
खानाबदोश किया किराया दे कर ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

माहिर
मुस्कराते हुए दर्दों गम छुपाने में माहिर हो गये हैं l
दिखावे के खुश होना दिखाने में माहिर हो गये हैं ll

सख्त जिन्दगी हररोज इम्तिहान लेती ही रहती हैं l
जख्मों के निशान को मिटाने में माहिर हो गये हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
दिसंबर की सर्दी
फूल गुलाबी दिसंबर की सर्दी में फिजाओ में रंगत छाई हैं l
खूबसूरत हसीन महबूबा के गुलाबी गालों पर लाली लाई हैं ll

साल का आखिरी माह ढ़ेर सारी यादे पीछे छोड़ जायेगा l
नई भोर के आगमन के ख्याल से अजीब सी खुशी पाई हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सपन
सपन के हौसलों ने दिल बाग बाग कर दिया l
खुशहाल जिन्दगी की उम्मीदों से भर दिया ll

जो होने वाला है उसकी खबर अंतर देते हुए l
आने वाले समय का पहले से ही सगड़ दिया ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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