Quotes by Dr Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Dr Darshita Babubhai Shah

Dr Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास

शिक्षक
अच्छी और सच्ची बात सीखा जाए वो ही शिक्षक कहलाता हैं l
कभी गुरु, कभी पिता, कभी माँ लाए वो ही शिक्षक कहलाता हैं ll

अनपढ़ को पढ़ना सिखाएं वो ही शिक्षक कहलाता हैं ll
आत्मविश्वास को जगाएं वो ही शिक्षक कहलाता हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास
ओ बंजारे
साँसों का सफ़र पूरा करने ओ बंजारे भटकना छोड़ दे l
अपनी जान को खतरा न दे डोरी पर लटकना छोड़ दे ll

कब तक भटकता फिरेगा अपनी पहचान तो बना जा l
नया गाँव मिलते ही पुराने गाँव से छटकना छोड़ दे ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास

भारत
विविधता में एकता ही भारत की शान हैं l
दुनिया में सबसे उच्च भारत का स्थान हैं ll

धर्म जाति के भेदभाव को छोड़कर बस l
इंसानियत और मानवता ही पहचान हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

ओस
उम्मीदों की ओस से जिन्दगी का शज़र सजाये रखा हैं l
साँसों का सफ़र पूरा करने को हौंसला बनाये रखा हैं l

मुलाकात का वादा किया है तो अभी तक जारी है तो l
इंतजार में बड़े अरमान से मेहंदी को हाथों में लगाये रखा हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास

हिंदी
हिन्दुस्तान में हिंदी की बोलबाला चलती हैं l
अंग्रेज औलाद को इस की हुकूमत खलती हैं ll

अपनी संस्कृति और भाषा की आराधना ही l
हर भारतवासी के दिलों दिमाग में पलती हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास

हिंदी

ग़ज़ल लिखने के लिए हिंदी के सिवा जचा ही नहीं l
अच्छी रचना बनाने शब्द कोई हाथ लगा ही
नहीं ll

सुबह से लेकर शाम हो गई ना जाने क्या
क्या l
सोचते फ़िर भी काफिया औ रदीफ मिला ही नहीं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास
दिखावा
दिखावे का प्यार जताना नहीं आता l
हाल ए दिल को बताना नहीं आता ll

जिगर में तूफान चल रहा हो तब के l
जूठी मुस्कुराहट सजाना नहीं आता ll

साँसों को पूरा करने का नाम जीवन l
दिल बहलाने का तराना नहीं आता ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास
शरद ऋतु
शरद ऋतु की शीतल संध्या के सुहाने मौसम में दिल छलकता हैं l
रोज आसमाँ की लालिमा को चुराना कर हवा में धड़कना हैं ll

शरद की धूप में नहा-निखर कर हो गये है दिवाने से कि l
चारो और फली फूली खिलती हरियाली के संग महकना हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास
जीवन
जीवन के लम्बे सफ़र में चलना तो होगा l
ईश जिस तरह से पालेंगे पलना तो होगा ll

तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हो जाता l
सुबह बाद शाम को तो ढलना तो होगा ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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मैं और मेरे अह्सास
चाह
हमेशा देर कर देता हूं में l

जरा सा हाथ देना है तो भी l
जरा सा साथ देना है तो भी l
जरा सा हौंसला देना है तो भी ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"

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