Quotes by Dr Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Dr Darshita Babubhai Shah

Dr Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास
तलाश
रूह को शांति दे सके वो मंज़र तलाश कर l
सिर्फ़ अपना कह सके वो घर तलाश कर ll

लालची और स्व केन्द्रित लोगों की भीड़ में l
इन्सां को तराशे वही पत्थर तलाश कर ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
प्रकृति
धन की लालच में पेड़,पौधे, वन काट कर l
प्रकृति संग इंसा ने अजीबो खेल खेले हैं ll

प्रकृति का दंश भुगतना होगा जिस ने भी l
अपने मतलब के लिए ही पापड बेले हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
शून्य से प्रश्न
शून्य से प्रश्न किया तेरी औक़ात क्या है बता दे जरा l
उसने कह दिया एक बार मुझे हटा के देख ले जरा ll

शून्य के बिना कोई हस्ती नहीं एक दो तीन चार की l
बढ़ती जाएगीं कीमत जितने लगाता जा अंक पे जरा ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
शूल या फूल
शूल या फूल जो भी मिले सर आँखों पर l
बाग में गुल जो भी खिले सर आँखों पर ll

वक़्त जैसा जवाब कोई नहीं दे सकता है तो l
प्यार में गर धूल भी मिले सर आँखों पर ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
क़दमों के निशाँ
दर्द के क़दमों के निशाँ को छुपाना आ गया l
हसके ग़म को छुपा के मुस्कराना आ गया ll

रिश्तों के बाजार के कच्चे खेलाड़ी निकले तो l
अपने बलबूते पे खुशियां कमाना आ गया ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
बादलों के पार
ख़ालिक ने बादलों के पार से संदेशा भेजा हैं l
एक बार फिर से नादां दिल के साथ खेला हैं ll

संदेश में खूबसूरत मिलन का आशीष भेजा है l
साथ में प्यारा सा हसीन नदीम भी भेजा हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
आलू चाट
आलू चाट ने दिवाना बनाया हैं l
प्लेट खूबसूरती से सजाया हैं ll

इमली और मिर्ची मिलकर ही l
रसिका को स्वाद लगाया हैं ll

चटपटी चटनी के साथ में चने l
खास मसालों ने रंग जमाया हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
मिलन
जमीन औ आसमान कभी भी मिलते ही नहीं l
बिना माली के गुलशन में गुल खिलते ही नहीं ll

बड़े व्यस्त हो गये हैं इश्क़ वाले देखो कि l
आजकाल वो ख्वाबों में भी दिखते ही नहीं ll

इतने सीधे सादे ओ नादां है भोले सनम कि l
सही तरीके से जूठ बोलना सिखते ही नहीं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

जुल्फ़ें है या बादल
जुल्फ़ें है या बादल गालों पर बिखर आए l
बहक न जाए तो महफिल से निकल आए ll

आज रूकते तो बहुत कुछ लुटा देना पड़ता l
मौक़े का फायदा उठाके जल्द सिमट आए ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

रात के हमसफ़र
ख्वाबों में रात के हमसफ़र ने सोने नहीं दिया l
रंगी नजारों ने चैन और सुकून को लूट लिया ll

पूनम की रात में चाँद सितारों की साक्षी में l
कुछ घंटे ही सही पूरी जिन्दगी को ही जिया ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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