Quotes by Dr Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Dr Darshita Babubhai Shah

Dr Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास
सुबह की चाँदनी
अरुणोदय से सुबह की चाँदनी खिली खिली लगती हैं l
कुहासा की वज़ह से हर जगह भीगी भीगी लगती हैं ll

रात के अँधियारे को भेद कर उजालों ने
क़दम रखा l
शीतल ठंड से धरती की चादर भीनी भीनी लगती हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
एक ही नज़र में

खालिक की एक ही नज़र में ज़मी से
आसमाँ पर बिठा दिया l
बेज़ार और निरस जिन्दगी को चाँद
सितारों से सजा दिया ll
खालिक-ईश्वर
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
होठों की शहनाई
होठों की शहनाई दिल से निकलने वाले मीठे
सुरों से बजती हैं l
प्यार में भरपूर मोहब्बत से छलकने वाले मीठे
सुरों से बजती हैं ll

दीपावली में तयखाने की सफाई में मिली हुई
सालों से कैद वो l
पुरानी तस्वीरों को देखकर बहकने वाले मीठे
सुरों से बजती हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

चाहत की ख़ुशबु

चाहत की ख़ुशबु फिझाओ को महकाती रहेगी l
दिलबर की जुदाई में दिल को बहलाती रहेगी ll

सोये हुए ज़ज्बातों को मीठी हवा देकर वो l
खामोशी से तमन्नाओं को बहकाती रहेगी ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सूरज
सूरज की पहली किरनों में नहा कर देखो l
तन से रात का अँधियारा हटा कर देखो ll

जिंदगी है तो नोक झोंक चलती रहती है तो l
रोज ही मन को प्रफुल्लित बना कर देखो ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

हँस के गले मिलते हैं
सभी गिले शिकवे भूलाकर हँस के गले मिलते हैं l
समंदर किनारे हाथों में हाथ डालकर फिरते हैं ll

प्यार में बुने हुए रिश्तों में फ़िर मिठास आने से l
दिल के गुलशन में खुशीयों के गुल खिलते हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मंज़िल का राही
मंज़िल का राही हूँ मंज़िल पर पहुँचकर रहूँगा l
हमसफ़र के साथ आगे ही आगे जा बढूँगा ll

लाख कठिनाईयों का सामना करके भी l
वक्त की रफ्तार के साथ साथ ही बहूँगा ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मोहब्बत की सज़ा
बेपनाह बेइंतिहा मोहब्बत की सज़ा पा रहे हैं l
दिन रात हर पल हर लम्हा जुदाई खा रहे हैं ll

कौन सी बात दिल पर लगा ली है कि l
दिल तोड़कर कोर्सों दूर रूठकर जा रहे हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

तस्वीर का दीदार
तस्वीर का दीदार करके गुजारा कर रहे हैं l
बस यहीं एक सहारे दिन रात सर रहे हैं ll

पूनम की शीतल चाँदनी रात में मिलन के l
लम्हें याद आते आँखों से आंसू झर रहे हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

घर
खुशबु बनकर हवाओं में बिखर जाएंगे l
घर ही लौटेंगे श्याम वर्ना किधर जाएंगे ll

इजाजत देदो आँधी की तरह बह जाएंगे l
बिना ऊपर देखे ही गली से गुजर जाएंगे ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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