Quotes by Dr Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Dr Darshita Babubhai Shah

Dr Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास

माहिर
मुस्कराते हुए दर्दों गम छुपाने में माहिर हो गये हैं l
दिखावे के खुश होना दिखाने में माहिर हो गये हैं ll

सख्त जिन्दगी हररोज इम्तिहान लेती ही रहती हैं l
जख्मों के निशान को मिटाने में माहिर हो गये हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
दिसंबर की सर्दी
फूल गुलाबी दिसंबर की सर्दी में फिजाओ में रंगत छाई हैं l
खूबसूरत हसीन महबूबा के गुलाबी गालों पर लाली लाई हैं ll

साल का आखिरी माह ढ़ेर सारी यादे पीछे छोड़ जायेगा l
नई भोर के आगमन के ख्याल से अजीब सी खुशी पाई हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सपन
सपन के हौसलों ने दिल बाग बाग कर दिया l
खुशहाल जिन्दगी की उम्मीदों से भर दिया ll

जो होने वाला है उसकी खबर अंतर देते हुए l
आने वाले समय का पहले से ही सगड़ दिया ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सपन
मिलन का सपन दिल को करार दे गया l
वक्त से पहेले ही पास सजन के ले गया ll

इश्क़ ने दिवाना बनाकर रख दिया है कि l
मोहब्बत के वास्ते रिश्तों नातो से गया ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

नयन
हौसलों की लगन को बताएं कैसे?
ओ अरमानों का ढोल बजाएं कैसे?

कहीं ज़माने की बुरी नजर ना लगे l
घर आँगन खूबसूरत सजाएं कैसे?

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

अगन
दिल से हौसलों की अगन को बुझने ना दिया l
मुश्किलों में भी जिंन्दगी को रुकने ना दिया ll

बड़ी तैयारी कर के आये थे बैचेनी बढ़ाने को l
दुश्मनों को चैन औ सुकून को लुटने ना दिया ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

गगन
हौसला गगन छूने का रखते हैं l
लोग दिवाना पगला कहते हैं ll

जिगर को फौलाद कर दिया कि l
ज्यादातर आसमाँ में रहते हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

चलन
हौसलों के चलन से जिन्दगी का सफ़र काट रहे हैं l
कंधे से कंधा मिलाकर सब दुःख दर्द बांट रहे हैं ll

जीवन में आते हुए सभी उतार चढाव को पार करने l
गिला शिकवा मिटाकर सभी साथ साथ रहे हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

चमन
बागबां के जाने से सारा चमन बिखर गया l
अपनों के बीच का अपनापन किधर गया ll

ममता से भरा दामन ढूँढने निकल पड़ा पर l
क़ायनात में सूना सूना लगा जिधर गया ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

बहुरंगा इन्सान
बहुरंगा इन्सान धड़कनों में रवानी दे गया l
अपनी मस्ती में दिल को जवानी दे गया ll

लम्बी जुदाई के दिनों में जिन्दा रहने को l
वो अकेलेपन का साथी निशानी दे गया ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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