Quotes by Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Darshita Babubhai Shah

Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास

ग़म में भी मुस्कुराते रहेना जीना
इसका नाम है l
सब कुछ ठीक है कहेना जीना
इसका नाम है ll

सफ़र ए जिंदगी की राह में अपनों
से मिले हुए l
दर्द को खामोशी से सहेना जीना
इसका नाम है ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

यादें आने से चमक-दार नज़र आते हैं l
गुल खिलने के आसार नज़र आते हैं ll

रिश्तों की नजाकत जानने लगे हैं कि l
आज दिवाने समझदार नज़र आते हैं ll

महफिलों में उखड़े उखड़े रहनेवाले अब l
मोहब्बत के तरफ़-दार नज़र आते हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सपनों से रिश्ता दिल से निभाना चाहिये l
पुरे करने के वास्ते वक्त बिताना चाहिये ll

जहां हो जैसे भी हो गुलज़ार कर सको तो l
माहौल खुशग्वार करना सिखाना चाहिये ll

जिदगी को जिंदादिली से जीकर हमेशा l
क़ायनात में सभी को जिताना चाहिये ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

नाराज है पर इतना मलाल नहीं हैं l
आँखें रोने की बजह से लाल नहीं हैं ll

पास रखने के लिए दिक्कतें है तो l
दूर जाने का कोई ख्याल नहीं हैं ll

कभी नाप ना पाओगे चौड़ाई क्यूँकी l
समंदर हृदय जितना विशाल नहीं हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

जुबान खामोश हैं पर कलम बोलती हैं l
हृदय में उठते लब्जों को खोलती हैं ll

दिल की बात सुनके दिल की कहतीं है l
वो सदाकत का साथ देकर डोलती हैं ll

उमड़ते भावों ओ उर्मि को किताबों में l
लिखने से पहले शब्दों को मोलती हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

आज हल्की सी झलक देखी
किस्मत की बात हैं l
दिलरुबा से हुई इशारों में बातेँ
हैरत की बात हैं ll

सरे आम बीच बाजर में लोगों
के सामने एक बार l
पर्दा उठाकर दीदार करवाया
हिम्मत की बात हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

दिल ही तो है शीशा नहीं है कि टूट जायेगा l
कमजोर नहीं की हाथों से हाथ छूट जायेगा ll

ज़माना है कुछ ना कुछ तो छीन लेगा पर l
इतने बेध्यान नहीं बैठे बिठाए लूट जायेगा ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

जो भी हो जैसे भी हो बस मुस्कुराते रहिए l
ख़ुशी से प्यार भरे नगमें गुनगुनाते रहिए ll

हर कोई यहाँ अपने ही ग़म में गुम है l
होठों पर नशीली मुस्कान सजाते रहिए ll

न जाने कल फ़िर मौक़ा मिले या ना मिले l
हर पल त्यौहारों की तरह मनाते रहिए ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

ताउम्र हँसकर जिये तुम्हारे लिए l
अश्क छुपकर पिये तुम्हारे लिए ll

जुल्मों सितम चुपचाप सहकर भी l
होठ बारहा सिये तुम्हारे लिए ll

बेपन्हा बेइंतिहा इश्क़ है पर l
इज़हार से बिये तुम्हारे लिए ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

रोशनी के लिए तरसते हुए सभी के l
अँधेरे घरों में दिये जगमगाया कर ll

हर कोई अपने गम है डूबा हुआ तो l
कायनात को खुशहाल बनाया कर ll

बेकार की छोटी छोटी बात पर l
रूठे हुए दिलों को मिलाया कर ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

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