Quotes by Dr Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Dr Darshita Babubhai Shah

Dr Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास
जिंन्दगी हँस हँस के देती है ताना

जिंन्दगी हँस हँस के देती है ताना l
नई सुबह है तो नया बजाना गाना ll

कभी खुशी कभी ग़म मिलते है पर l
रोते हुए आया है मुस्कराते जाना ll

खुशियों को गली गली में बाँटकर l
सभी चहेरे पर मुस्कराहट लाना ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

आसमाँ में सैयारे बने जो
ज़माने के काम आए l
नूर-ए-ख़ुदा किस्मत को
सजाने के काम आए ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

ज़िंदगी है तो इम्तिहाँ जैसा
ज़िंदगी है तो इम्तिहाँ जैसा सदा ही रहेगा l
हर लम्हा हर पल जीवन इस तरह बहेगा ll

सुबह शाम दिन रात मुस्कराते रहते है पर l
एक मकाम पर आकर थकान सा लगेगा ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई आह

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मैं और मेरे अह्सास

नूर-ए-ख़ुदा
आगे बढ़ता जा मंज़िल को नूर-ए-ख़ुदा मिल जायेगा l
कड़ी लगन औ मेहनत से एक दिन आशनाना पायेगा ll

ग़र खुद पे भरोसा होगा तो सारी कायनात साथ होगी l
आत्मविश्वास के दम से शख्सियत में खुमारी लायेगा ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

हर ग़ज़ल में ढूँढता हूँ

हर महफ़िल में हर ग़ज़ल में ढूँढता हूँ तूझे l
ये खुलखकर कहने की कोशिश नहीं की ll

न जा छोड़कर य़ह कहने गुज़ारिश नहीं की l
फिर से मुलाकात की भी ख़्वाहिश नहीं की ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मंज़िल
गम ना कर मंज़िल का रास्ता मिल जाएगा l
चाहत से भरपूर साथी नया मिल जाएगा ll

यू इधर उधर घूमने की जरूरत क्या है कि l
दिलबर के घर का जल्द पता मिल जाएगा ll

फ़िक्र ना कर दुनिया गोल है इतना जान ले l
एक बंध हो तो दरवजा दूसरा मिल जाएगा ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

बाढ़ के प्रकोप
यादों की बाढ़ के प्रकोप से आँखों में सुनामी आई है l
साथ अपने आंसुओं की तेज बारिश को भी लाई हैं ll

अब तो आदत सी हो गयी है दर्द सहने की क्योंकि l
कोई नई बात नहीं है कि दर्द से सालों पुरानी शनाशाई हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

अहबाब
छुपाकर रखना अहबाब अनमोल हैं l
हमसफ़र के साथ जीवन समतोल हैं ll

चेहरे पर मुस्कान देकर खुश रखता l
वो जिंदगी में सब से बड़ा तोल हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

अंधेरा हो रहा हैं

अंधेरा हो रहा हैं l
चमक खो रहा हैं ll

नई शुरुआत होगी l
उजाला बो रहा हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

उम्र बढ़ रही हैं
उम्र बढ़ रही है चलो गिले शिकवे दिल से छोड़ देते हैं l
भाईचारा के साथ सुकून की ओर रास्ते मोड़ देते हैं ll

मन के हारे हार और मन के जीते जीत यहीं सत्य l
अब हो ना पाएगा कुछ भी ख्यालों को झँझोड़ देते हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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