Quotes by Dr Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Dr Darshita Babubhai Shah

Dr Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास

पत्नि
शादी के बाद इशारों पे नाचना सीख ही गया ll
बात पत्नि की मुकम्मल मानना लीख ही गया ll

झाडू, पोछा, बर्तन, कपड़ा, घर की सफ़ाई में l
पत्नि के ज़ुल्म इतने बढ़े की चीख ही गया ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

महफिल
महफिल में दिवाने आने लगे हैं ll
नशीले प्यारे बादल छाने लगे हैं ll

रिश्ता खामोशी से बन रहा कि l
निगाहों से इशारे पाने लगे हैं ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

वक्त
बर्फ का घना बादल जल्द ही बिखर जाएगा l
सूर्य यहां नहीं आया तो वो किधर जाएगा ll

वक्त कभी भी कहीं भी ठहरता नहीं है तो l
सोचा ना कर ये लम्हा भी गुजर जाएगा ll

"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सुबह शाम दिन रात एक ही धुन में जी रहे l
चुपके ख्वाबों और ख़यालों में समा गये ll

कबसे राधा दीवानी बनी घूमे गली गली कि l
रूठी हुईं क़िस्मत को दुलार से मना गये ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

रिमझिम फुहार
रिमझिम फुहार में भीगने और भिगोने का दिल करता हैं l
बारिस की बूंदे तन मन में ताजगी की ऊर्जा को भरता हैं ll

यहीं लम्हें जो पूरी तरह से जीभर के जी लेने चाहिये l
वक्त प्रकाश से भी तेज रफ़्तार से आगे ही आगे सरता हैं ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मेरे रास्ते का अधिकार
डर लग रहा है पास भी जाते हुए l
एक अर्सा हो गया है मनाते हुए ll

किसी में इतना हौसला भी कहा है l
मेरे रास्ते का अधिकार मिटाते हुए ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

तेरी महिमा
कान्हा तेरी महिमा सुनने बादल आ गये l
सूरज की किरनों से तुझे बचाने छा गये ll

चितचोर क्या जादू कर जाती है निगोड़ी l
बांसुरी के मनभावन सुर दिल को भा गये ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

आनंद
दिल में आनंद का बादल गरजा है अभी l
लगता है हसीन हादसा गुज़रा है अभी ll

मौसम है जवा जवा ज़ज्बात भी है जवा l
प्यारा रिमझिम सावन बरसा है अभी ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

किस का था
महफिल में ये अंनजाना सलाम किस का था l
ग़ज़ल के तख़ल्लुस में ये नाम किस का था ll

क्या खूब बढ़ा चढ़ा कर बयां किया है हुस्न l
दिवान ए दर्शिता में कलाम किस का था ll

बड़े नायाब कारीगर की कारीगरी है देखो तो l
ये बारीकी से किया हुआ काम किस का था l

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

इम्तिहान
जिंन्दगी का हर नया दिन इक नये इम्तिहान में हैं l
फलसफा यहीं है सभी इन्सान अपनी उड़ान में हैं ll

क्षितिज के उस पार जाने क्या देखने जाना है कि l
एक पाँव जमीं पर तो एक पाँव आसमान में हैं ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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