Quotes by Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Darshita Babubhai Shah

Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

@dbshah2001yahoo.com
(1.6k)

मैं और मेरे अह्सास

यादों की महक
यादों की महक से जीस्त का रोम रोम सुगंधित हो उठा हैं l
प्रेम भरे अविरत झरनों से तन मन पुलकित हो उठा हैं ll

प्यार भरे लम्हों की याद आते ही एक कसक हो रही ओ l
जल्द मुलाकात का आश का दिपक प्रज्वलित हो उठा हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Read More

मैं और मेरे अह्सास

सूरज का पैग़ाम
सूरज का पैग़ाम कि कर जिन्दगी की नई शुरुआत भी ll
ख़ुद मुस्कुरा कर औरों के चहरे प़र दे मुस्कान भी ll

वक़्त सब का हिसाब रखता है तो बस मुकम्मल l
कर्म किया जा औ ख़ामोश रख अपनी जबान भी ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Read More

मैं और मेरे अह्सास

आत्मा की आवाज़
आत्मा की आवाज़ सही राह दिखाती हैं l
अच्छा बूरा क्या वो पहचाना सिखाती हैं ll

अनजाने और अनचाहे हादसों से बचाके l
खामोशी से अपना फर्ज बखूबी निभाती हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Read More

मैं और मेरे अह्सास

प्रेम के इन्द्रधनुष की बारिस हो रही हैं l
पिया मिलन की तमन्ना को बो रही हैं ll

सुहाने नशीले मौसम में सावन की धीमी l
रिमझिम छांट चैन और सुकून खो रही हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Read More

मैं और मेरे अह्सास

बेह्तरीन मंज़िल के लिए बेह्तरीन
सफ़र करना
ज़रूरी l
ख़ुद पर यकीन करके आगे बढ़ तो जश्न मनाएंगी ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Read More

मैं और मेरे अह्सास

माँ की दुआएं
माँ की दुआओ का असर देख लो l
होने लगी दुनिया में क़दर देख लो ll

पाठशाला से घर आएं हुए नादान l
बच्चों की आँख में तड़प देख लो ll

सो साल का बुढ़ा भी माँ को तरसे l
सभी उम्र में होती गरज देख लो ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Read More

मैं और मेरे अह्सास

बौद्धिक ज्ञान से सोच सकारात्मक हो जाती हैं l
भीतर आंतरिक खोज सकारात्मक हो जाती हैं ll

नया दिन जो भी साथ लाया उसे स्वीकार करें l
जिंदगी रोज ही रोज सकारात्मक हो जाती हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Read More

मैं और मेरे अह्सास

दिल में छुपी हुई सारी बात लिखो l
ख़ामोश अनकहे ज़ज्बात लिखो ll

युगों से तरसे है जिस भावना को l
तनमन भीगे एसी बरसात लिखो ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Read More

मैं और मेरे अह्सास

स्मृति
पुरानी स्मृतियाँ दिल में हलचल मचा जाती हैं l
सुहाने प्यारे मीठे लम्हेंकी याद रुला जाती हैं ll

तहखाने में से निकली हुई पुरानी तसवीरें l
छोटी सी मुलाकात की आग लगा जाती हैं ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Read More

मैं और मेरे अह्सास
दिनकर
मानवता का दिनकर लोगों के दिलों में उगना जरूरी हो गया हैं l
हर समय हर लम्हा चौकन्ना रहकर जगना
जरूरी हो गया हैं ll

एक दिन तो पंचभूत में ही मिल जाना है
ये स्वीकार करके l
मिट्टी से भले बने हो पर सोने का लगना
जरूरी हो गया हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Read More