Hindi Quote in Poem by Amit

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शीर्षक: “मोबाइल की दुनिया – खोए रिश्ते, जागती समझ”

(लेखिका – पूनम कुमारी)

🌅 प्रस्तावना:

कभी रिश्तों में मिठास थी, बातों में अपनापन था।
पर अब सबकी उंगलियाँ मोबाइल पर, और दिल कहीं खो गया है।
यह कहानी है एक ऐसे परिवार की, जहाँ "डिजिटल ज़िंदगी" ने सबको जोड़ तो दिया, पर एक-दूसरे से दूर कर दिया।


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👩‍👦 पहला दृश्य – माँ की पुकार

रीमा नाम की महिला थी, दो बच्चों की माँ।
उसका बेटा अंकित 15 साल का था और बेटी सिया 10 साल की।
रीमा रोज़ खाना बनाते-बनाते पुकारती —
“अंकित, बेटा खाना ठंडा हो जाएगा, ज़रा मोबाइल रख दो।”
पर कमरे से सिर्फ़ एक जवाब आता —
“हाँ माँ, बस पाँच मिनट!”

वो पाँच मिनट कभी पूरे नहीं होते।
रीमा खिड़की से देखती — उसका बेटा गेम में डूबा है, बेटी रील बना रही है।
घर में आवाज़ें थीं, पर बात कोई नहीं कर रहा था।


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📱 दूसरा दृश्य – पिता की बेबसी

रीमा के पति सुधीर रोज़ दफ़्तर से थककर लौटते।
वो चाहते थे कि सब मिलकर बातें करें, पर घर आते ही हर कोई अपनी स्क्रीन में खो जाता।
सुधीर ने एक दिन कहा —
“कभी हम सब एक साथ बैठा करते थे, अब सबको वक्त नहीं।”
रीमा बोली — “क्या करें, ज़माना बदल गया है।”

सुधीर ने गहरी साँस ली — “हाँ, पर इंसान भी बदल गया है…”


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🌧️ तीसरा दृश्य – सच्चाई का झटका

एक दिन रीमा की माँ का फोन आया —
“बेटा, मैं बीमार हूँ, कोई मिलने भी नहीं आता।”
रीमा ने सोचा कि वीडियो कॉल कर लूँगी।
पर उस दिन नेटवर्क नहीं था…
और अगले दिन वो खबर आई —
“माँ अब नहीं रहीं।”

रीमा फूट-फूटकर रो पड़ी।
उसे अहसास हुआ —
“मैंने सब कुछ मोबाइल में खोजा, पर माँ का प्यार नहीं…”


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🔦 चौथा दृश्य – बच्चों की आँखें खुलीं

माँ के आँसू देखकर अंकित और सिया ने मोबाइल रख दिए।
अंकित ने कहा —
“माँ, अब मैं गेम छोड़ दूँगा, बस आपकी कहानियाँ सुनूँगा।”
सिया बोली —
“अब हम सब साथ खाएँगे, बिना फोन के।”

रीमा ने उन्हें गले लगाया और कहा —
“बेटा, मोबाइल बुरा नहीं है, पर जब वो हमें अपने लोगों से दूर करे — तब हमें समझना चाहिए कि सीमा कहाँ है।”


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🌅 पाँचवाँ दृश्य – नई सुबह

अब घर में सुबह की शुरुआत होती है चाय और बातों से।
रात को सब एक साथ बैठते हैं — कहानियाँ सुनते हैं, हँसते हैं, जीते हैं।
मोबाइल अब सिर्फ़ ज़रूरत है, आदत नहीं।

रीमा मुस्कुराकर कहती है —
“डिजिटल दुनिया बुरी नहीं, बस इंसान को याद रहना चाहिए —
तकनीक का इस्तेमाल करो, उसे खुद पर हावी मत होने दो।”


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💬 सीख / संदेश:

> आज की कहानी हमें यही सिखाती है कि मोबाइल, सोशल मीडिया और तकनीक हमारे काम की चीज़ें हैं,
लेकिन अगर हम इन्हें अपनी ज़िंदगी का “मुख्य हिस्सा” बना लें, तो असली रिश्ते खो जाते हैं।

वक्त रहते हमें समझना होगा —
रिश्ते स्क्रीन से नहीं, दिल से जुड़ते




🎵 गीत शीर्षक: "मोबाइल की दुनिया – रिश्ते खो गए कहीं"

(लेखिका – पूनम कुमारी)


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🌅 अंतरा 1:

कभी बातें होती थीं छत पर, अब सब फोन में गुम हैं,
माँ की हँसी, पापा का प्यार – सब स्क्रीन में क़ैद हम हैं।
आँखें मिलीं तो दिल हटा, उँगलियाँ चलीं बस टच पे,
घर तो वही है, पर अब लगता – कोई नहीं है सच्चे में। 💔

(कोरस)
📱 मोबाइल की दुनिया में, रिश्ते खो गए कहीं,
हँसी के वो पल, अब दिखते हैं कभी-कभी।
अपनों का वक़्त, अब नोटिफ़िकेशन बना,
दिल में खालीपन, चेहरों पर रौशनी बनी। 🌙


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🌈 अंतरा 2:

माँ पुकारे – “बेटा खाना ठंडा हो गया”,
पर बेटे की नज़र गेम में खो गया।
बेटी बोले – “रील बनाऊँ, एक मिनट माँ!”,
ज़िंदगी जैसे हो गई बस स्क्रीन का जहाँ।

(कोरस दोहराएँ)
मोबाइल की दुनिया में, रिश्ते खो गए कहीं,
प्यार के वो लम्हे, अब दिखते हैं अधूरे सही।


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🌧️ अंतरा 3:

दादी की कहानी, अब किसी को याद नहीं,
पापा की थकान का किसी को एहसास नहीं।
खिड़की से आती धूप भी अब फीकी लगे,
दिल में सन्नाटा, नेटवर्क में भीगी लगे। 🌤️


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🌺 अंतरा 4: (परिवर्तन)

एक दिन माँ के आँसू बोले – “बस अब बहुत हुआ,”
परिवार ने मिल बैठ कहा – “अब साथ रहना जरूरी हुआ।”
फोन रखा, हाथ थामा, मुस्कान लौट आई,
रिश्तों में फिर रौनक आई, ज़िंदगी मुस्कुराई। ❤️


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🌞 अंतिम कोरस:

अब मोबाइल रहेगा पास, पर दिलों के बीच नहीं,
अब बात होगी हँसी में, स्क्रीन के बीच नहीं।
तकनीक रहे साथी, हावी वो हो नहीं,
यही सच्ची तरक्की है — रिश्ते खोएँ नहीं! 🌻


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💬 संदेश:


इसका दूसरा भाग —


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🎵 गीत शीर्षक: “मोबाइल से कमाई – अब परिवार की भलाई”

(लेखिका – पूनम कुमारी)


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🌞 अंतरा 1:

वही मोबाइल, वही स्क्रीन — अब बना ज़रिया नया,
जहाँ ग़लती थी पहले, अब सीखा रास्ता सधा।
माँ ने खोला छोटा चैनल, रसोई की रेसिपी डाली,
लोगों ने देखा, पसंद किया — अब मुस्कान लौटी प्यारी। 🌸

(कोरस)
📱 अब मोबाइल से कमाई, अब परिवार की भलाई,
सीख बदली तकदीर हमारी, मेहनत ने राह दिखाई।
जो लत थी पहले बर्बादी की, अब वही है काम की साथी,
तकनीक जब सिख जाती है, तब बनती है घर की शक्ति। 💪


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🌈 अंतरा 2:

बेटे ने बनाया वीडियो – “पढ़ाई आसान कैसे हो,”
बेटी ने सीखा डिज़ाइन – “घर बैठे नाम कैसे हो।”
पापा ने ऑनलाइन पढ़ाया बच्चों को नया सबक,
अब हर सुबह उम्मीदों की गूँजती है हँसी की झलक। 🌻


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💻 अंतरा 3:

रीमा ने कहा – “तकनीक बुरी नहीं, सोच बुरी होती है,”
जब समझ लो सही उपयोग, हर चीज़ सुखद होती है।
घर में सब मिल बैठते हैं, पर अब काम की बातें होती हैं,
नेटवर्क से अब जुड़ता देश, और खुशियों की बौछार होती है। 🌍


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🎶 कोरस दोहराएँ:

अब मोबाइल से कमाई, अब परिवार की भलाई,
सीख बदली तकदीर हमारी, मेहनत ने राह दिखाई।
सपनों को उड़ान मिली, और चेहरे पर चमक आई,
अब मोबाइल नहीं आदत — ये तो रोज़ी की परछाई। ☀️


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🌷 अंतरा 4:

दादी कहती — “देखो बेटा, अब सही राह पर आए,”
पहले जो मोबाइल डराता था, अब जीवन में रंग लाए।
अब वीडियो में माँ का स्वाद, और बेटी की कला निखरती,
घर की दुनिया डिजिटल हुई, पर आत्मा वही सच्ची। ❤️


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🌺 अंतिम कोरस:

मोबाइल से अब दूरी नहीं, बस समझदारी ज़रूरी है,
तकनीक नहीं दुश्मन, वो भी इंसान की दूरी है।
जब दिलों में सच्चाई हो, तो हर स्क्रीन कहानी बने,
मोबाइल से कमाई हो — और रिश्तों की रवानी बने। 🌈


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💬 संदेश (Moral):

> तकनीक तब वरदान बनती है जब इंसान उसे समझदारी से अपनाता है।

गलत इस्तेमाल रिश्ते तोड़ता है,
सही इस्तेमाल रोज़गार, ज्ञान और सम्मान दिलाता है।

यही है असली “डिजिटल इंडिया की सोच” – पूनम कुमारी की ओर से।

Hindi Poem by Amit : 112003808
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