“जहाँ सत्य के शब्द और प्रवचन बिकते हैं — वहाँ सत्य नहीं होता।”
धर्म को जो व्यवसाय बना बैठे हैं,
वे सत्य के सबसे बड़े व्यापारी हैं।
उन्होंने शब्दों को वस्तु बनाया,
और मौन को माल बना दिया।
पर सत्य की कोई कीमत नहीं होती —
क्योंकि वह बाजार का विषय नहीं,
अस्तित्व का अनुभव है।
जिसे बेचा जा सकता है,
वह सत्य नहीं — केवल शास्त्र है।
और जिसे खरीदा जा सकता है,
वह ज्ञान नहीं — केवल भ्रम है।
सत्य तो वही है जो भीतर घटता है,
जहाँ कोई गुरु नहीं, कोई ग्राहक नहीं।
वह तुम्हारे अपने मौन का प्रकाश है —
जो जागे तो पूरा ब्रह्मांड एक साथ बोल उठे।
धर्म की आँखें अब खुलनी होंगी,
क्योंकि जो बिक रहा है वह प्रवचन है,
और जो शेष है — वही सत्य।