मेरे तुम,
कहां है वो सुगंध
उन फूलों की?
कहां है वो महक
उन बीते लम्हों की?
क्या तुम उन्हें अपने साथ ले गए हो?
फिर इन पत्तों में सन्नाटा क्यों है,
इन झरनों की कलकल भी
आज मौन-सी क्यों लगती है?
उन पलों की यादें
अब भी ठहरी हैं मेरे आस-पास,
पर उनमें वो चमक नहीं —
जो तुम्हारी मौजूदगी से थी।
मेरे हो न तुम?
फिर क्यों नहीं हो मेरे?
पास न सही... पर दूर भी
क्यों इतने अपने लगते हो?
जब मैंने पूछा था —
“क्या तुम मेरे हो?”
तब तुम्हारी मुस्कान ही जवाब थी,
जिसे मैंने सच मान लिया था।
पर अब सोचती हूँ...
क्या वो मुस्कान सच थी,
या बस एक खामोश विदाई?