मैं और मेरे अह्सास
रात भर झिलमिलाती
रात भर झिलमिलाती चाँदनी दिलबर का रास्ता देख रही हैं l
गली से गुजरने वाले सभी लोगों को आता
जाता देख रही हैं ll
घर से बाहिर निकलते ही मिट्टी की सोढ़ी
खुशबु घेरे और l
सुबह की पहली किरण से पहेले प्रभातियां
गाता देख रही हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह