जीवन भागा जा रहा है ✧
मनुष्य भागा जा रहा है —
कहीं पहुँचने की जल्दी में,
पर कहाँ जाना है —
यह पूछने की फुर्सत नहीं।
धार्मिक भाग रहा ईश्वर की ओर,
भौतिक भाग रहा बाज़ार की ओर,
दोनों के कदम थके हुए हैं,
दोनों की आँखें बुझी हुई हैं।
किसी ने पूछा नहीं —
“क्यों भाग रहा हूँ?”
क्योंकि ठहरना सबसे कठिन है।
ठहरने में सामना है —
अपने ही शून्य से,
अपने ही सत्य से।
वह कहता है — “जीने के लिए भागता हूँ।”
पर सच यह है —
भागने में जीना खो गया।
जब एक पल बस रुककर
तूने देखा —
पत्ते की हरियाली, हवा का गीत,
अपने दिल की नब्ज़ की आवाज़...
उसी पल जीवन लौट आया।
जीना कभी भविष्य में नहीं था,
ना ही स्वर्ग में,
ना ही किसी ईश्वर के दर्शन में —
जीना तो इस सांस में है,
जो तू बिना चाह के ले सके।
जो ठहर गया —
वही पहुँचा।
बाकी सब बस रास्ते की धूल हैं।
🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲