कलम-ए-कल्ब से हम यूँ ही इश्क का इज़हार करते हैं तुम किसी और की न हो जाओ, बस इससे डरा करते हैं
आसकार-ए-इश्क नहीं होता हमसे, न ही करते हैं बस इतना कहते हैं, कि हम तुमसे प्यार करते हैं
ये हरगिज़ अहम नहीं कि मैं ही करुं इकरार-ए-हिब तुम बस नज़रें मिलाओ और आरज़ू-ए-शबाब देखो
हाँ यह अज़ीब है कि तुम 'lotus को चाहो, लेकिन मेरी सादगी बड़ी अनमोल है, बाकी सब अदाओं से