मैं और मेरे अह्सास
गुज़ारा
मुस्कुराने के अलावा कोई गुज़ारा नहीं l
अब रो रोकर दिन बिताना गवारा नहीं ll
एक ऐसा दिन तो बताओं ज़रा तुम l
याद किये बिना लम्हा बिताया नहीं ll
बिना बताये रूठ के चले जा रहे हो ये l
ग़लती को अब दोहराना दुबारा नहीं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"