मैं और मेरे अह्सास
मेला
हुस्न की टोली को मेले में देख मन्त्रमुग्ध हो गये हैं ll
इश्क़ वाले देखते ही देखते खूबसूरती में खो गये हैं ll
जहाँ में अपनी मरज़ी के मालिक होते है दिल फ़ेंक l
वैसे भी इश्क़ में पागल थे और दिवाने मजनूँ हो गये हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह