मैं और मेरे अह्सास
बुलाया
महफिल में जानबूझ के बुलाया नहीं गया l
ओ बिन बुलाए गये तो बिठाया नहीं गया ll
वो गैरों की खातिरदारी इतने मशगूल थे कि l
हम से जबरदस्ती हक़ जताया नहीं गया ll
जानकर भी अनजान बने फ़िर रहे थे कि l
मुस्कुराके हाथ आगे बढ़ाया नहीं गया ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"