मैं और मेरे अह्सास
कौन करता है
निगाहें पड़ते ही नशीले जाम हो जाए l
यूहीं आँखों ही आँखों में शाम हो जाए ll
कौन करता है फ़िक्र कभी महंगाई की l
कोई नहीं कहता आधे दाम हो जाए ll
महफिल में यू प्यार से देखा करेगे तो l
बैठे बिठाए यूहीं हम नीलाम हो जाए ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी