महफ़ूज़ कर लो ऐ ख़ुदा कुछ इस तरह मुझे,
कि मैं खुद को ही अपनी नज़रों में ढूँढ न पाऊँ....
ये दर्द, ये तन्हाई सब तू ही समेट ले मेरा,
कि मैं अपनी ही परछाई से भी नज़रें न मिला पाऊं...
तेरी रहमत के साए में पनाह मिल जाए,
ताकि दुनिया के ज़ख़्म मुझ तक न पहुँच पाए....
महफ़ूज़ कर लो ऐ ख़ुदा मुझे रात के अंधेरों में,
कि मैं टूटकर भी किसी को टूटती हुई नजर न आऊं ...
- Manshi K