बहुत सुंदर और गहन अनुभूति से भरा यह लेख है। यह नारी और पुरुष की गहराई में जाकर, उनकी ऊर्जा, असंतुलन, और आज के समाज में हो रहे सूक्ष्म शोषण की एक नई परिभाषा प्रस्तुत करता हूं।
✧ स्त्री का शोषण — आधुनिक भ्रम का सत्य ✧
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
स्त्री के लिए संभोग कोई योग नहीं है।
पुरुष के लिए वह भोग, सुख, तप, और कभी-कभी मोक्ष भी हो सकता है — लेकिन स्त्री के भीतर एक मौलिक संतुलन है, जो इस भोग से टूट जाता है। इस संतुलन का टूटना ही उसकी आत्मा को बिखेर देता है।
दुनिया कहती है कि स्त्री का अतीत में शोषण हुआ।
पर वास्तविक शोषण आज हो रहा है — जब उसके स्त्रैण गुण उससे छीने जा रहे हैं।
उसे पुरुष के "तीन पैर" वाले अस्तित्व के साथ खड़ा किया जा रहा है।
यह प्रतिस्पर्धा नहीं — यह उसका कटाव है।
पुरुष, जो स्वयं भीतर से अधूरा है,
स्त्री को अपनी तरह अधूरा बना रहा है।
कुदरत ने स्त्री को चार पैर दिए —
स्थिरता, प्रेम, सौंदर्य और ऊर्जा का चतुर्भुज।
और पुरुष को तीन —
अहं, इच्छा और गति।
लेकिन अब पुरुष स्त्री की एक टांग काट कर उसे अपने बराबर खड़ा कर रहा है —
वह बराबरी नहीं, स्त्रीत्व का अपहरण है।
पुरुष उसे अबला कहकर
उसका अधिकार छीन रहा है —
और स्त्री भी, इस भ्रम में,
अपना मूल गुण खोती जा रही है।
स्त्री के पास एक दिव्य ऊर्जा है —
लेकिन वह स्वयं भी उसे पहचान नहीं पाई।
पुरुष अपनी दो कौड़ी की उपलब्धियाँ दिखाकर
स्त्री को आकर्षित करता है,
और स्त्री उन्हें ही मूल्य समझने लगती है।
समानता के नाम पर स्त्री को पुरुष के जैसे बना देना
एक गहरी आध्यात्मिक भूल है।
समानता का अर्थ है —
पुरुष में स्त्रैण गुण का विकास।
जब पुरुष अपने भीतर उस स्त्रैणता को स्वीकारेगा,
तभी वह स्त्री के संग खड़ा हो सकेगा।
स्त्री को पुरुष के बराबर खड़ा करना नहीं,
बल्कि पुरुष को स्त्री की गहराई में उतरना है।
आज स्त्री का शोषण केवल शारीरिक या सामाजिक नहीं है,
बल्कि उसकी ऊर्जा, उसकी प्रकृति, उसकी मौन शक्ति का शोषण है।
पुरुष ने शिक्षा, विज्ञान, राजनीति बनाई —
लेकिन वह सब पुरुष दृष्टि से बनी व्यवस्था है।
स्त्री को पुरुष बनाकर नपुंसक समाज गढ़ा जा रहा है।
यह कोई षड्यंत्र नहीं,
यह केवल पुरुष की अज्ञानता है।
पुरुष ने स्त्री को बाहर से देखा —
उसके रूप, उसकी देह, उसकी आवाज को —
लेकिन उसकी भीतर की संपदा को कभी नहीं देखा।
स्त्री को बाहर से देखना
पुरुष की सबसे बड़ी भूल है।
स्त्री को समझना है —
तो पुरुष को अपने भीतर उतरना होगा।
वही अंतर्मन, वही मौन —
जहाँ पुरुष स्वयं से जुड़ता है,
उसी जगह वह स्त्री से भी जुड़ सकता है।
यदि यह अंतर्दृष्टि नहीं आई —
तो पुरुष स्त्री को अपने जैसा ही समझता रहेगा,
और स्त्री कभी स्त्री नहीं रह पाएगी।
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📘 यह लेख समाप्त नहीं होता — यह एक आह्वान है।
स्त्री को लौटना होगा अपनी ऊर्जा की ओर,
पुरुष को उतरना होगा मौन की ओर।
तभी एक नया संतुलन जन्म लेगा —
जहाँ न स्त्री नीचे होगी, न पुरुष ऊपर,
बल्कि दोनों एक दूसरे की गहराई में समर्पित होंगे।
अज्ञात अज्ञान