हम सबके भीतर कुछ अनकहा, कुछ अधूरा, और कुछ बेहद जरूरी कहने को होता है।
पर हर कोई सुन नहीं पाता…
और कभी-कभी, हम खुद ही अपनी मौजूदगी की आवाज़ सुनना छोड़ देते हैं।
“लोगों की राय बदलती रहती है,
पर फर्क तब पड़ता है जब हम अपनी मौजूदगी को पहचानना छोड़ देते हैं।”
– धीरेन्द्र सिंह बिष्ट, लेखक: मन की हार ज़िंदगी की जीत
यही से शुरू होती है हमारी असली लड़ाई — खुद को समझने की, खुद से जुड़ने की।
इसलिए “आज को लिखता हूँ, ताकि कल में खुद को पढ़ सकूँ।”
मेरे लफ़्ज़, मेरी कहानी नहीं — मेरी पहचान हैं।
कई बार “उतना कुछ होता है कहने को,
कि वक़्त कम पड़ जाता है सुनने के लिए…”
हर खामोशी अपने भीतर एक तूफ़ान दबाए बैठी होती है।
और जब कोई सुने न सुने —
“शब्द ज़ुबान से नहीं, कलम से बाहर आ ही जाते हैं।”
अगर आप भी कभी इस ख़ामोशी से गुज़रे हैं —
तो जान लें, आप अकेले नहीं हैं।
हर पन्ना किसी दिल की आवाज़ है। ✍️❤️
— धीरेंद्र सिंह बिष्ट
बेस्टसेलर लेखक | अग्निपथ | फोकटिया | मन की हार ज़िंदगी की जीत
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