*वक़्त के साए*
हसीन पल कहीं ठोकर में टूटे,
ख्वाब थे जो प्यारे, तक़दीर से भी ज़्यादा।
वफ़ा की आरज़ू की, मगर जतन काम ना आए,
जो चल पड़ा, वो मेरे साए को भी ठुकरा गया।
धड़कते सीने से उठी थी एक पुकार,
जिसे नज़रअंदाज़ कर गया वो बेख़बर यार।
वो ज़रिया था जो बहा,
पर हम ना साथ रहे,
बस रह गए लम्हे, जो अब सिसकियाँ बन बहते हैं।
चल, ऐ मेरे यारा,
कुछ तो पलकों को थाम ले, थक गई हैं ये भी अब रोते-रोते।
क्यों कोई ना मिले,
जब तू ही हर शाम में साथ रहे?
शायद जवाब कोई ना हो
बस तन्हाई ही हो, जो हमेशा साथ रहे...
_Mohiniwrites