अधूरी पेंसिल
छोटे से गाँव में एक गरीब लड़का था – आरव। उसके पास स्कूल जाने के लिए न जूते थे, न बस्ता, और न ही नई किताबें। बस एक पुरानी कॉपी और आधी पेंसिल, जो उसके पिता ने मजदूरी कर के खरीदी थी।
एक दिन क्लास में टीचर ने कहा,
“कल एक प्रतियोगिता है – जो सबसे सुंदर अक्षरों में लिखेगा, उसे इनाम मिलेगा।”
आरव के पास नई पेंसिल नहीं थी, पर उसके अंदर एक ज़िद थी – कुछ कर दिखाने की।
उस रात वह आधी पेंसिल को चाकू से छील-छीलकर नुकीला करता रहा। उसकी माँ ने देखा और पूछा,
“इतनी मेहनत क्यों कर रहा है बेटा?”
आरव ने मुस्कुरा कर कहा,
“माँ, ये पेंसिल भले अधूरी है, पर मेरा सपना पूरा है – जीतने का!”
अगले दिन प्रतियोगिता हुई। बच्चों ने रंग-बिरंगी पेंसिलों से लिखा, पर आरव ने अपने दिल से लिखा – साफ़, सुंदर, और भावपूर्ण।
जब परिणाम आया – सब चौंक गए।
पहला इनाम आरव को मिला।
टीचर ने पूछा,
“इतने साधनों के बिना कैसे?”
आरव ने कहा –
“पेंसिल छोटी थी, पर हौसले पूरे थे।”
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✅ सीख:
> जीतने के लिए साधन नहीं, संकल्प चाहिए।
चाहे पेंसिल आधी हो, पर सपना पूरा होना चाहिए। 💪
📚 राजु कुमार चौधरी
✍️ लेखक | कवि | कहानीकार
📍प्रसौनी, पर्सा, नेपाल
"हर शब्द में जादू, हर कहानी में रहस्य"
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