आत्मा – एक रूहानी बयां
तू जब दिल से निकला,
क्यूँ निकला, ये वजह ना मिली कहीं...
शायद हक मेरा था —
पर अब सोचो तो, चाहत भी अपनी मरज़ी से चली गई।
तेरे साए में भीगे थे सावन,
हर बूंद में तेरा नाम बहा।
एक सुबह थी जो रूह में उतर आई,
पर राहत किससे थी — ये खुद से भी छुपा।
मैं बनजारन बनी,
तेरे प्यार की राहों में भटकी,
ना इश्क़ मिला, ना जुदाई समझ आई —
मन मेरा बावरा, फिर भी तुझसे हार ना मानी।
_Mohiniwrites