हम सभी क्यो आज में ना जी रहे,
सोचकर पीछे , न आगे हो रहे।
साथ के सब, आगे जाते जा रहे,
और हम हैं कि, पीछे होते जा रहे।
कोई किसी टांग खींचता क्यों है?
जब खुद ही पीछे हो जाते है।
जब बढ़ाना चाहते हैं क़दम आगे,
तो फिर राहों में रोड़े बिछाते क्यों हैं?
जब दौड़कर आगे निकलना चाहते
तो साजिश का रास्ता अपनाते क्यों हैं?
कोई अपनी ही दौड़ में जो हारे,
तो दूसरों को गिराते क्यों हैं।
मंज़िलें सब की अलग अलग हैं,
हर किसी की अपनी अपनी डगर है।
फिर भी जलन की आग में जलकर,
क्यों बन रहे कांटे और जहर हैं ?
समय किसी के लिए रुकता नहीं,
जो बीत गया, वो सपना हुआ करता है।
जो आगे बढ़ा , वही जिया करता है।
जो रुका,वही बस किस्सा हुआ करता है।
तो छोड़ो बीते कल की सोच पुरानी,
ना जलो, ना ही जलाओ और किसी को।
जो आया है, उसे जी भर कर तो जी लो,
इस उजाले में जिओ और सबको जीने दो।
-सूबा लाल "अंजाना"
- Umakant