खामोश लब्ज़ की कहानी।
धरा का धरा रहा जहां में खड़ा था,
कदम की आहट सुनता रहा,
चार कदम दूरी तय करता हु,
फिर चुप चुप रहता हु,
चलता हु मंज़िल के करीब,
फिर अल्फाज नहीं निकले,
गुंजाइश का हर ग़म खुशी खुशी सहते,
खुद को परखता रहता,
मंज़िल तय करता में खुद अपनी,
खामोशी ही तेरी सजा।
- Kamlesh Parmar