उसका आलिंगन फूल भी बन सकता है और ज्वार भी
अगर वो खुश रही तो करेगी उद्धार नहीं तो खुलेंगे विनाश के द्वार भी.
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कभी कोमल फूल सी कभी चंचल नदियों की धार सी कभी लेती कालिका अवतार भी
समजती समजाती कभी मन मारती तो कभी करती वो फेशले आर पार भी,
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लड़ती कभी मन के दंद्र से तो क़भी ऊँचे आवाज़ को मात देती करके पलटवार भी,
रहती वो हर रूप मे क़भी मासूम बच्चों सी, क़भी कठोर पहाड़ सी तो क़भी इंसान समझदार भी!